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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
रसोई, घोड़ा, बैल, गाय, बकरा आदि पशुओं का व्यापार निषिद्ध माना गया है 120 (निषिद्ध आजीविका)।
__ वैदिक-परम्परा के गृहस्थ-आचार का जैन-परम्परा से प्रमुख अन्तर यज्ञ-विधान को लेकर है। वैदिक-परम्परा में गृहस्थ के लिए इन पाँच यज्ञों का विधान है - 1. भूतयज्ञ (प्राणियों को अन्न प्रदान करना), 2. मनुष्य-यज्ञ (अतिथिपूजन), 3. देवयज्ञ (होम), 4. पितृ-यज्ञ (श्राद्ध) 5. ब्रह्म-यज्ञ (वेदपाठ, स्वाध्याय)। यदि विचारपूर्वक देखें, तो उपर्युक्त पाँच यज्ञों में मात्र देव-यज्ञ (होम) और पितृ-यज्ञ (श्राद्ध)-यही दो ऐसे हैं, जिनका सम्बन्ध जैन-विचारधारा से नहीं है। गांधीजी की व्रत-व्यवस्था और जैन-परम्परा
वर्तमान युग में गांधीवादी-दर्शन में जिन एकादश व्रतों का विधान है,121 उनका जैन-आचारदर्शन की व्रत-व्यवस्था से काफी साम्य है। यद्यपि यह कहना तो उचित नहीं होगा कि उन्होंने इस व्रत-विचार को जैन-परम्परा से ही ग्रहण किया है, तथापि जैन-धर्म के पारिवारिक-संस्कारों और समकालीन जैन आध्यात्मिक-विचारक श्रीमद्राजचन्द्रभाई (जिनसे गाँधीजी काफी अधिक प्रभावितथे) के सम्पर्क से उनकी व्रत-विचारणा अप्रभावित भी नहीं कही जा सकती । तुलनात्मक-दृष्टि से विचार करने पर निम्नलिखित साम्य परिलक्षित होता हैजैन-आचारदर्शन
गांधीवादी-दर्शन 1. अहिंसाव्रत
___ 1. अहिंसाव्रत सत्यव्रत
2. सत्यव्रत 3. अचौर्यव्रत
3. अचौर्यव्रत 4. स्वपत्नीसंतोष अथवा ब्रह्मचर्यव्रत 4. ब्रह्मचर्य 5. अपरिग्रह
5. अपरिग्रह दिशा-परिमाण
6. (शरीर-श्रम) 7. उपभोग-परिभोग-विरमण 7. अस्वाद 8. अनर्थदण्ड
8. भय-वर्जन 9. सामायिक
9. सर्वधर्म-समानत्व 10. देशावकाशिक ___ 10. (स्पर्श-भावना) 11. पौषधव्रत
11. (स्वदेशी) 12. अतिथि-संविभाग
इस प्रकार, हम देखते हैं कि गांधीवादी-व्रतव्यवस्था युगीन-समस्याओं के प्रकाश में किया हुआ जैन-व्रतव्यवस्था का संशोधित अद्यतन संस्कार है।
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