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गृहस्थ-धर्म
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4. अतिभार-प्राणियों पर शक्ति से अधिक बोझ लादना अथवाशक्ति से अधिक काम लेना अतिभार है। जैन-नैतिकता की दृष्टि में अधीनस्थ कर्मचारियों एवं पशुओं से उनकी सामर्थ्य एवं सीमा से अधिक काम लेना भी अनैतिक-आचरण है।
5. भोजन-पानी का निरोध - अधीनस्थ पशुओं एवं कर्मचारियों, अथवा पारिवारिक-जनों को समय पर एवं आवश्यक मात्रा में भोजन, पानी आदि जीवन की आवश्यक वस्तुएँ नहीं देना भी अहिंसाव्रती गृहस्थ के लिए नैतिक-अपराध है। 2.सत्य-अणुव्रत
स्थूल असत्य से विरति जैन-गृहस्थ का सत्याणुव्रत है। गृहस्थ-साधक असत्य से विरत होने के हेतु प्रतिज्ञा करता है कि “मैं स्थूल-मृषावाद का यावत् जीवन के लिए मन, वचन और काय से त्याग करता हूँ, मैं न स्वयं मृषा (असत्य) भाषण करूँगा, न अन्य से कराऊँगा।"40 प्रस्तुत प्रतिज्ञा में स्थूल-मृषावाद का त्याग गृहस्थ-साधक से अपेक्षित है, लेकिन स्थूल-मृषावाद या बड़ी झूठ किसे कहना, यह निश्चित करना कठिन है। श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र में सत्याणुव्रत की प्रतिज्ञा में जो संकेत मिलता है, उसके आधार पर स्थूल असत्य का कुछ स्वरूप सामने आ जाता है, वहाँ पर निम्न पाँच स्थूल असत्य निरूपित
1. वर-कन्या के सम्बन्ध में झूठी जानकारी देना। 2. गौ आदि पशुओं के सम्बन्ध में झूठी जानकारी देना या असत्य भाषण करना। 3. भूमि के सम्बन्ध में असत्य भाषण करना। 4. किसी की अमानत (धरोहर) को दबाने के लिए झूठ बोलना। 5. झूठी साक्षी देना।
आचार्य हेमचन्द्र ने भी अपने योगशास्त्र में इन्हीं पाँच बातों को यथाक्रम(1) कन्या-लीक, (2) गो-अलीक, (3) भूमि-अलीक, (4) न्यासापहार और (5) कूट-साक्षी-ऐसे पाँच स्थूल असत्य बताए हैं। ये सभी लोकविरुद्ध हैं, विश्वासघात के जनक हैं और पुण्यनाशक हैं, अतः श्रावक को स्थूल असत्य से बचना चाहिए।422
स्थूल-मृषावाद की व्यापक परिभाषा के विषय में मुनि सुशीलकुमारजी लिखते हैं, 'यद्यपि स्थूल असत्य और सूक्ष्म असत्य की कोई निश्चित परिभाषा देना कठिन है, तथापि जिस असत्य को दुनिया असत्य मानती है, जिस असत्य भाषण से मनुष्य झूठा कहलाता है, जो लोक-निन्दनीय और राज-दण्डनीय है, वह असत्य स्थूल असत्य है, श्रावक ऐसे स्थूल असत्य भाषण का त्याग करता है। झूठी साक्षी देना, झूठा दस्तावेज लिखना, किसी की गुप्त
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