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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
'संकल्पयुक्त त्रस प्राणियों की हिंसा' । चाहे आजीविका-उपार्जन का क्षेत्र हो, चाहे वह जीवन की सामान्य आवश्यकताओं के सम्पादन काक्षेत्र हो, अथवा स्व एवं पर के रक्षणका क्षेत्र हो-संकल्पपूर्वक त्रस प्राणियों की हिंसा तो गृहस्थ-साधक के लिए अविहित ही है, लेकिन हमें स्मरण रखना चाहिए कि जिस प्रकार कृषि-कर्म या अन्य उद्योगों में हिंसा के संकल्प के अभाव में भी त्रस-हिंसा हो जाती है, उसी प्रकार एक सच्चे साधक के आत्मरक्षा के प्रयास में भी हिंसा का संकल्प नहीं होता है - वह हिंसा करता नहीं है, मात्र हिंसा हो जाती है और इसीलिए यह नहीं माना जाता कि उसका व्रतभंग हुआ है। गृहस्थ-जीवन के समग्र क्षेत्रों में की जानेवाली त्रस-हिंसा का त्यागी होता है, लेकिन हो जानेवाली त्रस-हिंसा का त्यागी नहीं होता है। गृहस्थ-साधक के लिए हिंसा-अहिंसा की विवक्षा में 'संकल्प' की ही प्रमुखता है।
गृहस्थ-साधक अहिंसाणुव्रत में त्रस प्राणियों की संकल्पजन्य हिंसा से विरत होता है, अतः संकल्पाभाव में आजीविकोपार्जन, व्यापार एवं जीवन-रक्षण के क्षेत्र में हो जानेवाली हिंसा से उसका व्रत दूषित नहीं होता। (अ) अपने व्यावसायिक एवं औद्योगिक-क्षेत्र में वह संकल्पपूर्वक त्रस प्राणियों की हिंसासे विरत तो होता है, लेकिन व्यावसायिकया औद्योगिकक्रियाओं के सम्पादन में सावधानी रखते हुए भी यदि त्रस प्राणियों की हिंसा हो जाती है, जैसे- खेतखोदते समय किसी प्राणी की हिंसा हो जाए, तो ऐसी हिंसा से उसका व्रत दूषित नहीं होता है।38 (ब) जीवन की सामान्य क्रियाएँ, जैसे-भोजन बनाना, स्नान करना आदि में भी सावधानी रखते हए यदिवस प्राणियों की हिंसा हो जाए, तो भी व्रतभंग नहीं होता है। (स) शरीर-रक्षा, आत्मरक्षा एवं आश्रितों की रक्षा के निमित्त से होने वाली हिंसा से भी उसका व्रत भंग नहीं होता।
गृहस्थ-साधकको अहिंसा-अणुव्रत का सम्यक् पालन करने की दृष्टि से निम्नांकित दोषों से बचना चाहिए।
1. बन्धन -प्राणियों को कठोर बन्धन से बांधना, पशु-पक्षियों को पिंजरे में डालना, अथवा उन्हें अपने इष्ट स्थान पर जाने से रोकना। अधीनस्थ कर्मचारियों को निश्चित समयावधि से अधिक समय तक रोककर कार्य लेना भी एक प्रकार का बन्धन ही है।
2. वध - प्राणियों को लकड़ी, चाबुक आदि से पीटना अथवा ताड़ना देना, अथवा अन्य किसी प्रकार से उन पर घातक प्रहार करना आदि।
3. छविच्छेद - छविच्छेद का अर्थ है-अंगोपांग काटना, अंगों का छेदन करना, खस्सीकरण करना। छविच्छेदका लाक्षणिक-अर्थ वृत्तिच्छेद भी होता है। किसी प्राणी की जीविकोपार्जन में बाधा उत्पन्न करना वृत्तिछेद है। किसी की आजीविका छीन लेना, उचित पारिश्रमिक से कम देना आदि अहिंसा के साधक के लिए अनाचरणीय हैं।
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