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________________ 294 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन वैयक्तिक-साधना की दृष्टि से कितने ही गृहस्थ-साधक भी कुछ भिक्षुओं की अपेक्षा साधना से उच्च स्तर पर स्थित हों, लेकिन जहाँ श्रमण-संस्था और गृही-जीवन के मध्य सार्वभौम-दृष्टि से तुलना करने का प्रश्न है, निस्सन्देह श्रमण-संस्था गृहस्थ-जीवन से श्रेष्ठ है। श्रमण-साधक की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करते हुए बुद्ध कहते हैं- "निरहंकार, सुव्रतधारी, एकांतवासी प्रव्रजित मुनि और दारपोणी (पत्नी आदि का भरण-पोषण करने वाले) गृहस्थ में कोई समानता नहीं है। असंयमी गृहस्थ दूसरे जीवों का वध करता है, मुनि नित्य दूसरे प्राणियों की रक्षा करता है, जैसे आकाशगामी नीलग्रीव मयूर कभी भी वेग में हंस की समानता नहीं करता है।'' बुद्ध और महावीर-दोनों यह मानते हैं कि गृहवास बाधाओं से पूर्ण और प्रव्रज्या खुली जगह है, 10 यद्यपि दोनों ही यह स्वीकार करते हैं कि गृहस्थ-साधक भी सम्यक्दृष्टि और सदाचरण से सम्पन्न होने पर साधना-पथ में इस स्थिति को पहुँच जाता है कि वह अधिक जन्म ग्रहण नहीं करता है, इस शरीर का त्याग करने पर स्वर्ग लाभ करता है औरभावी जन्म में श्रमण-धर्म को स्वीकार कर निर्वाण प्राप्त कर लेता है। गृहस्थ-साधक सीधा निर्वाण-लाभ कर सकता है या नहीं, इस सम्बन्ध में दोनों परम्पराओं में दोनों प्रकार के वचन उपलब्ध होते हैं। दिगम्बर-परम्परा और स्थविरवाद इस सम्बन्धमें भी एकमत हैं कि गृहस्थ-साधक श्रामण्य अंगीकार किए बिना मुक्ति या निर्वाण प्राप्त नहीं कर सकता है, वह मात्र स्वर्गगामी हो सकता है। इस दृष्टिकोण की पुष्टि मज्झिमनिकाय के निम्न सूत्र से होती है हे गौतम! क्या कोई गृहस्थ है, जो गृहस्थ-संयोजनों को बिना छोड़े, काया को छोड़, दुःख का अन्त करने वाला हो ? नहीं वत्स! ऐसा कोई गृहस्थ नहीं। हे गौतम! क्या कोई गृहस्थ है, जो गृहस्थ के संयोजनों को बिना छोड़े, काया को छोड़ने पर स्वर्ग को प्राप्त होने वाला हो? वत्स! एक ही नहीं, सौ दो सौ-अनेक गृहस्थ हैं, जो गृहस्थ-संयोजनों को बिना छोड़े मरने पर स्वर्गगामी होते हैं।"11 यद्यपि श्वेताम्बर-परम्परा में मान्य उपासकदशांगसूत्र में भी दस प्रमुख गृहस्थउपासकों को स्वर्गगामी ही माना गया है, तथापि श्वेताम्बर- परम्परागृहस्थ-साधक द्वारा सीधे मुक्ति-लाभ की धारणा को मानती है। ___ बौद्धधर्म की महायान-शाखा में भी गृहस्थ-साधक के द्वारा निर्वाण-लाभ को मान्य किया गया है। महायान सूत्रालंकार के अनुसार, कोई भी गृहस्थ प्रव्रज्या लिए बिना ही निर्वाण प्राप्त कर सकता है - वह चाहे व्यापारी, शिल्पी, राजा, दास या चाण्डाल ही क्यों नहो। मिलिन्दप्रश्न 1 के अनुसार, गृहस्थ के लिए निर्वाण प्राप्त करना असम्भव नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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