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(414); महाभारत और गीता का दृष्टिकोण (414); शौच (पवित्रता) (414); सत्य (415); संयम (415);संयम और बौद्ध-दृष्टिकोण (416); गीता में संयम (416); तप (416); त्याग (416); अकिंचनता (417); अकिंचनता और बुद्ध (417); महाभारत में अकिंचनता (417); ब्रह्मचर्य (418); बौद्ध-परम्परा में ब्रह्मचर्य (418); गीता में ब्रह्मचर्य (418); वैदिक-परम्परा में दश धर्म (सद्गुण) (419); बौद्ध-धर्म और दश सद्गुण (419); धर्म के चार चरण (420); दान (420); दान के प्रकार (425); शील (423); तप (423); भावना (अनुप्रेक्षा) (423), अनित्य-भावना (423); बौद्ध एवं वैदिक-परम्पराओं में अनित्य-भावना (425); एकत्वभावना (424); बौद्ध-परम्परा में एकत्व-भावना (425); गीता एवं महाभारत में एकत्व-भावना (425); अन्यत्व-भावना (425); गीता एवं महाभारत में अन्यत्व-भावना (426); अशुचि-भावना (426); बौद्धपरम्परा में अशुचि-भावना (426); महाभारत में अशुचि-भावना (427); अशरण-भावना बौद्ध-परम्परा में अशरण-भावना (427); महाभारत में अशरण-भावना (427),संसार-भावना (428); बौद्ध-परम्परा में संसारभावना (428); महाभारत में संसार-भावना (428) आस्रव-भावना (429); बौद्ध-परम्परा में आस्रव-भावना (429); संवर-भावना (429); बौद्ध-परम्परा में संवर-भावना (430); निर्जरा-भावना (430); धर्मभावना (430); बौद्ध-परम्परा में धर्म भावना (431); महाभारत में धर्मभावना (431); लोक-भावना (431); बोधिदुर्लभ-भावना (431)बौद्धपरम्परा में बोधि-दुर्लभ-भावना (432); चार भावनाएँ - 1. मैत्री-भावना 2. प्रमोद 3. करुणा 4. माध्यस्थ (उपेक्षा) (433-434); बौद्ध-परम्परा में चार भावनाएँ (434), वैदिक-परम्परा में चार भावनाएँ (435); समाधिमरण (संलेखना) (435); समाधि-मरण के भेद (436); समाधि-मरण ग्रहण करने की विधि (437); बौद्ध-परम्परा में मृत्युवरण (437); वैदिकपरम्परा में मृत्युवरण (438); समाधि-मरण के दोष (439); समाधि-मरण
और आत्महत्या (440); समाधि-मरण का मूल्यांकन (441)। अध्याय : 18 आध्यात्मिक एवं नैतिक-विकास 487-534 आत्मा की तीन अवस्थाएँ (446); बहिरात्मा (447); अन्तरात्मा (447) परमात्मा (448); आध्यात्मिक-विकास की प्रक्रिया और ग्रन्थि-भेद (450); यथाप्रवृत्तिकरण (450); अपूर्वकरण (452); अनावृत्तिकरण;
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