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और परीषह (362); वैदिक-परम्परा और परीषह(362); कल्प (363); बौद्ध-परम्परा और कल्पविधान (365); वैदिक-परम्परा और कल्पविधान (366); जैन-परम्परा में भिक्षु-जीवन के सामान्य नियम (367); शबलदोष (367); अनाचीर्ण (368); समाचारी के नियम (369); दिनचर्या सम्बन्धी नियम (370); आहार सम्बन्धी नियम (370); आहार ग्रहण करने के छ: कारण (370-371); आहार-त्याग के छ: कारण (371); आहार सम्बन्धी दोष (371); उद्गम के सोलह दोष (371); उत्पादन के सोलह दोष (371);ग्रहणैषणा के दसदोष (372); ग्रासैषणा के पांच दोष (372); वस्त्र-मर्यादा (372); आवास सम्बन्धी नियम (373); जैन भिक्षुजीवन के सामान्य नियमों की बौद्ध-नियमों से तुलना (373); संघ-व्यवस्था (374) बौद्ध एवं जैन संघ-व्यवस्था में अन्तर (375); भिक्षुओं के पारस्परिक-सम्बन्ध (376); जैन और बौद्ध-परम्परा में श्रमणी-संघव्यवस्था (377); भिक्षु एवं भिक्षुणी के पारस्परिक-संबंध (378); भिक्षुणीसंघ के पदाधिकारी (379); प्रायश्चित्त-विधान (दण्ड-व्यवस्था) (379); लघुमासिककेयोग्य अपराध (380); गुरुमासिककेयोग्य अपराध (380); लघुचातुर्मासिक के योग्य अपराध (380); गुरुचातुर्मासिक के योग्य अपराध (381); बौद्ध-परम्परा में प्रायश्चित्त-विधान (382); आदर्श जैन-श्रमण, का स्वरूप (384); बौद्ध-परम्परा में आदर्श श्रमण का स्वरूप जैन-श्रमणाचार पर आक्षेप और उनका उत्तर (387)। अध्याय 17 जैन-आचार के नियम
षट् आवश्यक कर्म (392); सामायिक रमता) (392); स्तव, (भक्ति) (394); वन्दन (397); प्रतिक्रमण (319) प्रतिक्रमण किसका (400); प्रतिक्रमण और महावीर (401); बौद्ध-परम्परा और प्रतिक्रमण (402); वैदिक तथा अन्य धर्म-परम्पराएँ और प्रतिक्रमण (403); कायोत्सर्ग (404); कायोत्सर्ग के प्रकार (405); कायोत्सर्ग के दोष (405); बौद्ध-परम्परा में कायोत्सर्ग (405); गीता में कायोत्सर्ग (406); कायोत्सर्ग के लाभ (406); कायोत्सर्ग के लाभ के सन्दर्भ-शरीर में शास्त्रीय-दृष्टिकोण (406); प्रत्याख्यान (407); गीता में त्याग (408); दशविधधर्म-सद्गुण (409); क्षमा (410); बौद्ध-परम्परा में क्षमा (410); वैदिक-परम्परा में क्षमा (411); मार्दव (411); बौद्ध-परम्परा में अहंकार की निन्दा (412); गीता में अहंकार-वृत्ति की निन्दा (413); आर्जव (413); बौद्ध-दृष्टिकोण
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