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सामाजिक-नैतिकता के केन्द्रीय-तत्त्व : अहिंसा, अनाग्रह और अपरिग्रह
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गीता में अहिंसा के आधार-गीताकार भी अहिंसा के सिद्धांत के आधार के रूप में 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की उदात्त भावना को लेकर चलता है। यदि हम गीता को अद्वैतवाद की समर्थक मानें, तो अहिंसा के आधार की दृष्टि से जैन-दर्शन और अद्वैतवाद में यह अन्तर है कि जहाँ जैन-परम्परा में सभी आत्माओं की तात्त्विक-समानता के आधार पर अहिंसा की प्रतिष्ठा की गई है, वहाँ अद्वैतवाद में तात्त्विक-अभेद के आधार पर अहिंसा की स्थापना की गई है। वाद कोई भी हो, पर अहिंसा की दृष्टि से महत्व की बात एक ही है कि अन्य जीवों के साथ समानता, जीवन के अधिकार का सम्मान और अभेद की वास्तविक संवेदना या आत्मीयता की अनुभूति ही अहिंसा की भावना का उद्गम है। जब मनुष्य में इस संवेदनशीलता का सच्चे रूप में उदय हो जाता है, तब हिंसा का विचार एक असंभावना बन जाता है। हिंसा का संकल्प सदैव पर' के प्रति होताहै, 'स्व' या आत्मीय के प्रति कभी नहीं, अतः आत्मवत् दृष्टि का विकास ही अहिंसा का आधार है। जैनागमों में अहिंसा की व्यापकता
जैन-विचारणा में अहिंसा का क्षेत्र कितना व्यापक है, इसका बोध हमें प्रश्नव्याकरणसूत्र से हो सकता है। उसमें अहिंसा के साठ पर्यायवाची नाम वर्णित हैं 29 - 1. निर्वाण, 2. निवृत्ति, 3. समाधि, 4. शान्ति, 5. कीर्ति, 6. कान्ति, 7. प्रेम, 8. वैराग्य, 9. श्रुतांग, 10. तृप्ति, 11. दया, 12. विमुक्ति, 13. क्षान्ति, 14. सम्यक् आराधना, 15. महती, 16. बोधि, 17. बुद्धि, 18. धृति, 19. समृद्धि, 20. ऋद्धि, 21. वृद्धि, 22. स्थिति (धारक), 23. पुष्टि (पोषक), 24. नन्द (आनन्द), 25. भद्रा, 26. विशुद्धि, 27. लब्धि, 28. विशेष दृष्टि, 29. कल्याण, 30. मंगल, 31. प्रमोद, 32. विभूति, 33. रक्षा, 34. सिद्धावास, 35. अनास्रव, 36.कैवल्यस्थान, 37. शिव, 38. समिति, 39.शील, 40. संयम, 41.शील-परिग्रह, 42. संवर, 43. गुप्ति, 44. व्यवसाय, 45. उत्सव, 46. यज्ञ, 47. आयतन, 48. यतन, 49. अप्रमाद, 50. आश्वासन, 51. विश्वास, 52. अभय, 53. सर्व अमाघात (किसी को न मारना), 54 चोक्ष (स्वच्छ), 55.पवित्र, 56.शुचि, 57.पूता या पूजा, 58.विमल, 59.प्रभात और 60.निर्मलतर।
इस प्रकार, जैन आचार-दर्शन में अहिंसाशब्द एकव्यापक दृष्टि को लेकर उपस्थित होता है। उसके अनुसार, सभी सद्गुण अहिंसा में निहित हैं और अहिंसाही एकमात्र सद्गुण है। अहिंसा सद्गुण-समूह की सूचक है। अहिंसा क्या है ?
हिंसा का प्रतिपक्ष अहिंसा है। यह अहिंसा की एक निषेधात्मक-परिभाषा है, लेकिन हिंसा का त्याग मात्र अहिंसा नहीं है। निषेधात्मक-अहिंसा जीवन के समग्र पक्षों को
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