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________________ 230 भारतीय आचार - दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन से नहीं, जिससे भय होगा, उसी के प्रति अहिंसक बुद्धि बनेगी, जबकि जैनधर्म तो सभी प्राणियों के प्रति, यहाँ तक कि वनस्पति, जल और पृथ्वीकायिक- जीवों के प्रति भी हिंसक होने की बात कहता है, अतः अहिंसा को भय के आधार पर नहीं, अपितु जिजीविषा और सुखाकांक्षा के मनोवैज्ञानिक - सत्यों के आधार पर अधिष्ठित किया जा सकता है । पुनः, जैनधर्म में इन मनोवैज्ञानिक सत्यों के साथ ही अहिंसा को तुल्यता-बोध बौद्धिक- आधार भी दिया गया है। वहाँ कहा गया है कि जो अपनी पीड़ा को जान पाता है, वही तुल्यता - बोध के आधार पर दूसरों की पीड़ा को भी समझ सकता है। 21 प्राणीयपीड़ा की तुल्यता के बोध के आधार पर होने वाला आत्मसंवेदन ही अहिंसा की नींव है। वस्तुतः, अहिंसा का मूलाधार जीवन के प्रति सम्मान, समत्वभावना एवं अद्वैतभावना है । समत्वभाव से सहानुभूति तथा अद्वैतभाव से आत्मीयता उत्पन्न होती है और इन्हीं से अहिंसा का विकास होता है। अहिंसा जीवन के प्रति भय से नहीं, जीवन के प्रति सम्मान से विकसित होती है। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि सभी प्राणी जीवित रहना चाहते हैं, कोई मरना नहीं चाहता, अतः निर्ग्रन्थ प्राणवध (हिंसा) का निषेध करते हैं। 22 वस्तुतः, प्राणियों के जीवित रहने का नैतिक अधिकार ही अहिंसा के कर्त्तव्य को जन्म देता है। जीवन के अधिकार का सम्मान ही अहिंसा है। उत्तराध्ययनसूत्र में समत्व के आधार पर अहिंसा के सिद्धान्त की स्थापना करते हुए कहा गया है कि भय और वैर से मुक्त साधक, जीवन के प्रति प्रेम रखने वाले सभी प्राणियों को सर्वत्र अपनी आत्मा के समान जानकर उनकी कभी भी हिंसा न करे | 23 यह मेकेन्जी की इस धारणा का कि अहिंसा भय पर अधिष्ठित है, सचोट उत्तर है । आचारांगसूत्र में तो आत्मीयता की भावना के आधार पर ही अहिंसा - सिद्धान्त की प्रतिष्ठापना की गई है। उसमें लिखा है - जो लोक (अन्य जीव समूह) का अपलाप करता है, वह स्वयं अपनी आत्मा का भी अपलाप करता है। 24 आगे पूर्ण आत्मीयता की भावना को परिपुष्ट करते हुए महावीर कहते हैं - जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह तू ही है 1 25 भक्तपरिज्ञा में भी लिखा है - किसी भी अन्य प्राणी की हत्या वस्तुतः अपनी ही हत्या है और अन्य जीवों की दया अपनी ही दया है। 26 इस प्रकार, जैनधर्म में अहिंसा का आधार आत्मवत् दृष्टिही है। - बौद्धधर्म में अहिंसा का आधार - भगवान् बुद्ध ने भी अहिंसा के आधार के रूप में इसी 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की भावना को ग्रहण किया है। सुत्तनिपात में बुद्ध कहते हैं'जैसा मैं हूँ, वैसे ही ये सब प्राणी हैं और जैसे ये सब प्राणी हैं, वैसा ही मैं हूँ - इस प्रकार, आपने ममान सब प्राणियों को समझकर न स्वयं किसी का वध करे और न दूसरों से कराए। ' 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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