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जैन-परम्परा और आश्रम-सिद्धान्त (185); बौद्ध-परम्परा और आश्रमसिद्धान्त (186)। अध्याय : 12 स्वधर्म की अवधारणा 217-224
गीता में स्वधर्म (187); जैनधर्म में स्वधर्म (188); तुलना (189); स्वधर्म का आध्यात्मिक-अर्थ (190); गीता का दृष्टिकोण (192); ब्रेडले का स्वस्थान और उसके कर्तव्य का सिद्धान्त तथा स्वधर्म (193)। अध्याय : 13 सामाजिक-नैतिकता के केन्द्रीय तत्त्व 225-274
अहिंसा, अनाग्रह और अपरिग्रह अहिंसा (195), जैनधर्म में अहिंसा का स्थान (195); बौद्धधर्म में अहिंसा का स्थान (196); हिन्दू-धर्म में अहिंसा का स्थान (197); अहिंसा का आधार (198); बौद्धधर्म में अहिंसा का आधार (200); गीता में अहिंसा के आधार (200); जैनागों में अहिंसा की व्यापकता (201); अहिंसा क्या है ? (201); दव्य एवं भाव-अहिंसा (202); हिंसा के प्रकार (202); मात्र शारीरिक-हिंसा (202); मात्र वैचारिक-हिंसा (202); वैचारिक एवं शारीरिक-हिंसा (202); शाब्दिक-हिंसा (202); हिंसा की विभिन्न स्थितियों (203); हिंसा के विभिन्न रूप (204); संकल्पजा (संकल्पीहिंसा) (204); विरोधजा (204); उद्योगजा (204); आरम्भजा (204); हिंसा के कारण (204); हिंसा के साधन (204); हिंसा और अहिंसा मनोदशा पर निर्भर (204); अहिंसा के बाह्य-पक्ष की अवहेलना उचित नहीं (206); पूर्ण अहिंसा के आदर्श की दिशा में (208); पूर्ण अहिंसा सामाजिक-सन्दर्भ में (212); अहिंसा के सिद्धांत पर तुलनात्मक-दृष्टि से विचार (213); यहूदी, ईसाई और इस्लाम-धर्म में अहिंसा का अर्थ-विस्तार (215); भारतीय चिन्तन में अहिंसा का अर्थ-विस्तार (215); अहिंसा का विधायक रूप (219); बौद्ध एवं वैदिक-परम्परा में अहिंसा का विधायक-पक्ष (220); हिंसा के अल्प-बहुत्व का विचार (221); अनाग्रह (वैचारिक-सहिष्णुता) (223); जैनधर्म में अनाग्रह (223); बौद्ध आचार-दर्शन में वैचारिक-अनाग्रह (226); गीता में अनाग्रह (227); वैचारिक-सहिष्णुता का आधार-अनाग्रह (अनेकान्त-दृष्टि) (228); धार्मिकसहिष्णुता (229); धर्म एक या अनेक (229); सम्प्रदायभेद-अनुचित कारण (230); उचित कारण (230); राजनीतिक-सहिष्णुता (232); सामाजिक एवं पारिवारिक-सहिष्णुता
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