________________
- 17
(123); सैन्यास-मार्ग पर अधिक बल (124); जैन और बौद्ध-दर्शन में सैन्यास निरापद मार्ग (124); क्या सैन्यास पलायन है ? (125); गृहस्थ
और संन्यास-जीवन की श्रेष्ठता (126); गीता का दृष्टिकोण शंकर का सैंन्यासमार्गीय दृष्टिकोण (128), तिलकका कर्ममार्गीय दृष्टिकोण (128); गीता का दृष्टिकोण समन्वयात्मक (129); निष्कर्ष (130); भोगवाद बनाम वैराग्यवाद (131); जैन-दृष्टिकोण (132); बौद्ध-दृष्टिकोण (134); गीता का दृष्टिकोण (135); विधेयात्मक बनाम निषेधात्मक-नैतिकता (135); जैन-दृष्टिकोण (135); बौद्ध-दृष्टिकोण (137); गीता का दृष्टिकोण (137); व्यक्तिपरक बनाम समाजपरक नीतिशास्त्र (137); प्रवृत्ति और निवृत्ति-दोनों आवश्यक (139); दोनों की सीमाएँ एवं क्षेत्र (140); जैनदृष्टिकोण (140); बौद्ध-दृष्टिकोण (141); गीता का दृष्टिकोण (141); उपसंहार (141)। अध्याय:9 भारतीय-दर्शन में सामाजिक-चेतना 171-188
__ भारतीय-दर्शन में सामाजिक-चेतना का विकास (145); वेदों एवं उपनिषदों में सामाजिक-चेतना (146); गीता में सामाजिक-चेतना (148); जैन एवं बौद्ध-धर्म में सामाजिक-चेतना (150); रागात्मकता और समाज (152); सामाजिकता का आधार, राग या विवेक ? (154); सामाजिक जीवन में बाधक तत्त्व, अहंकार और कषाय (155); संन्यास और समाज (156); पुरुषार्थ चतुष्टय एवं समाज (157)। अध्याय : 10 स्वहित बनाम लोकहित 189-204
जैनाचार-दर्शन में स्वार्थ और परार्थ (162); जैन-साधना में लोकहित (162); तीर्थंकर (163); गणधर (164); सामान्य केवली (164); आत्महित स्वार्थ नहीं है (165); द्रव्य-लोकहित (166); भाव-लोकहित (166); पारमार्थिक-लोकहित (166); बौद्ध-दर्शन की लोकहितकारिणी दृष्टि (166); स्वहित ओर लोकहित के सम्बन्ध में गीता का मन्तव्य (173)। अध्याय : 11 वर्णाश्रम-व्यवस्था 205-216
वर्ण-व्यवस्था (176); जैनधर्म और वर्ण-व्यवस्था (176); बौद्ध आचार-दर्शन में वर्ण-व्यवस्था (178); ब्रह्मज कहना झूठ है (179); वर्ण-परिवर्तन सम्भव है (180); सभी जाति समान हैं (180); आचरण ही श्रेष्ठ है (180); गीता तथा वर्ण-व्यवस्था (180); आश्रम-धर्म (184);
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org