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दर्शन में भेदाभ्यास (78); गीता में आत्म-अनात्म विवेक (भेद-विज्ञान) (80); निष्कर्ष (82)। अध्याय : 6 सम्यक्-चारित्र (शील) 109-122 सम्यग्दर्शन से सम्यक्चारित्र की ओर (83); सम्यक्चारित्र का स्वरूप (84); चारित्र के दो रूप, (85); निश्चयदृष्टि से चारित्र (85); व्यवहारचारित्र (85); व्यवहारचारित्र के प्रकार (86); चारित्र का चतुर्विध वर्गीकरण (86); चारित्र का पंचविध वर्गीकरण-सामायिक-चारित्र, यथाख्यात-चारित्र (87); चारित्र का त्रिविध वर्गीकरण (87); बौद्ध-दर्शन और सम्यकुचारित्र (87); शील का अर्थ (86); शील के प्रकार-द्विविध वर्गीकरण (88); त्रिविध वर्गीकरण (89); शील का प्रत्युपस्थान (90); शील का पदस्थान (90); शील के गुण (90); अष्टांग साधनापथ और शील (91); वैदिकपरम्परा के शील या सदाचार (92); शील (92); सामयाचारिक (92); शिष्टाचार (93); सदाचार (93); उपसंहार (94)। अध्याय :7 सम्यक् तप तथा योग-मार्ग 123-146 नैतिक-जीवन एवं तप (96); जैन साधना-पद्धति में तप का स्थान (98); हिन्दू साधना-पद्धति में तप का स्थान (99); बौद्ध साधना-पद्धति में तप का स्थान (99); तप के स्वरूप का विकास (101); जैन-साधना में तप का प्रयोजन (102); वैदिक-साधना में तप का प्रयोजन (103); बौद्ध-साधना में तप का प्रयोजन (103); जैन-साधना में तप का वर्गीकरण (104); शारीरिक या बाह्य-तप के भेद-अनशन, ऊनोदरी, रस-परित्याग, भिक्षाचर्या, कामक्लेश, संलीनता (104-105); आभ्यान्तर-तप के भेद-प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग, ध्यान-धर्मध्यान, शुक्लध्यान, (105108); गीता में तपका वर्गीकरण (109); बौद्ध-साधना में तप का वर्गीकरण (110) अष्टांग योग और जैनदर्शन (112); तप का सामान्य स्वरूप : एक मूल्यांकन (114)। अध्याय : 8 निवृत्तिमार्ग और प्रवृत्तिमार्ग 147-170
___ निवृत्ति-मार्ग एवं प्रवृत्ति-मार्ग का विकास (120); निवृत्ति-प्रवृत्ति के विभिन्न अर्थ (120); प्रवृत्ति और निवृत्ति-सक्रियता एवं निष्क्रियता के अर्थ में -जैन-दृष्टिकोण (121); बौद्ध-दृष्टिकोण (122); गीता का दृष्टिकोण (122); गृहस्थ-धर्म बनाम संन्यास-धर्म-जैन और बौद्ध-दृष्टिकोण
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