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मिथ्यात्व के 25 भेद (40); बौद्ध दर्शन में मिथ्यात्व के प्रकार ( 41 ) ; गीता में अज्ञान (41); पाश्चात्य - दर्शन में मिथ्यात्व का प्रत्यय - जातिगत मिथ्या धारणाएँ, व्यक्तिगत मिथ्या विश्वास, बाजारू मिथ्या विश्वास, रंगमंच की भ्रान्ति (42) ; जैन-दर्शन में अविद्या का स्वरूप (42) ; बौद्ध दर्शन में अविद्या का स्वरूप (43); बौद्ध दर्शन की अविद्या की समीक्षा ( 44 ); गीता एवं वेदान्त में अविद्या का स्वरूप ( 45 ); वेदान्त की माया की समीक्षा (46); उपसंहार (46)।
अध्याय : 4
सम्यग्दर्शन
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सम्यक्त्व का अर्थ (47); दर्शन का अर्थ (48) ; सम्यग्दर्शन के विभिन्न अर्थ (48); जैन आचार - दर्शन में सम्यग्दर्शन का स्थान ( 51 ); बौद्ध दर्शन में सम्यग्दर्शन का स्थान ( 52 ); वैदिक परम्परा एवं गीता में सम्यग्दर्शन (श्रद्धा) का स्थान ( 53 ); जैनधर्म में सम्यग्दर्शन का स्वरूप एवं सम्यग्दर्शन के दसभेद (54-55); सम्यक्त्व का त्रिविध वर्गीकरण - (अ) कारक सम्यक्त्व, रोचक सम्यक्त्व, दीपक सम्यक्त्व ( 55 ); (ब) औपशमिक - सम्यक्त्व, क्षायिकसम्यक्त्व, क्षायोपशमिक- सम्यक्त्व ( 56 ); सम्यक्त्व का द्विविध वर्गीकरण(अ) द्रव्य - सम्यक्त्व और भाव- सम्यक्त्व ( 57 ); (ब) निश्चय सम्यक्त्व और व्यवहार-सम्यक्त्व (57); (स) निसर्गज - सम्यक्त्व और अधिगमज - सम्यक्त्व (57); सम्यक्त्व के पांच अंग-सम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा, आस्तिक्य (58) ; सम्यक्त्व के दूषण (अतिचार) - शंका, आकांक्षा, विचिकित्सा, मिथ्यादृष्टियों की प्रशंसा, मिथ्यादृष्टियों का अति परिचय (59) ; सम्यग्दर्शन के आठ दर्शनाचार - निश्शंकता, निष्कांक्षता, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपबृंहण, स्थिरीकरण, वात्सल्य, प्रभावना, ( 60-64); सम्यग्दर्शन की साधना के छह स्थान (64) ; बौद्ध दर्शन में सम्यग्दर्शन का स्वरूप (64); गीता में श्रद्धा का स्वरूप एवं वर्गीकरण (66); उपसंहार (68)। सम्यग्ज्ञान ( ज्ञानयोग)
अध्याय : 5
जैन नैतिक-साधना में ज्ञान का स्थान ( 70 ) ; बौद्ध दर्शन में ज्ञान का स्थान (71); गीता में ज्ञान का स्थान (71) ; सम्यग्ज्ञान का स्वरूप (71) ; ज्ञान के स्तर (72) ; बौद्धिक-ज्ञान (73); आध्यात्मिक ज्ञान (74) ; नैतिक जीवन का लक्ष्य आत्मज्ञान (75); आत्मज्ञान की समस्या (76) ; आत्मज्ञान की प्राथमिक विधि भेदविज्ञान (77) ; जैन-दर्शन में भेद - विज्ञान (78) ; बौद्ध -
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