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विषय-सूची
अध्याय : 1 समत्व-योग
25-46 नैतिक-साधना का केन्द्रीयतत्त्व समत्व-योग (1); जैनआचार-दर्शन में समत्व-योग (3); जैन-दर्शन में विषमता (दुःख) का कारण (4); जैनधर्म में समत्व-योगका महत्व (5); जैन-धर्म में समत्व-योग का अर्थ (6); जैन-आगमों में समत्व-योग का निर्देश (7); बौद्ध आचार-दर्शन में समत्वयोग (7); गीता के आचार-दर्शन में समत्व-योग (9); गीता में समत्व का अर्थ (14); गीता में समत्वयोग की शिक्षा (14); समत्वयोग का व्यवहारपक्ष (16); समत्वयोग का व्यवहार-पक्ष और जैन-दृष्टि (19); समत्वयोग के निष्ठासूत्र (19); समत्वयोग के क्रियान्वयन के चार सूत्र-वृत्ति में अनासक्ति (19); विचार में अनाग्रह (20); वैयक्तिक-जीवन में असंग्रह (अनासक्ति) (20); सामाजिक-आचरण में अहिंसा (20)। अध्याय : 2 त्रिविध साधना-मार्ग
47-62 त्रिविध साधना-मार्ग ही क्यों ? (21); बौद्ध-दर्शन में त्रिविध साधना-मार्ग (21); गीता का त्रिविध साधनामार्ग (22); पाश्चात्य-चिन्तन में त्रिविध साधनापथ (22); साधन-त्रय का परस्पर सम्बन्ध (23); सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान का पूर्वापर सम्बन्ध (23); बौद्ध-विचारणा में ज्ञान और श्रद्धा का सम्बन्ध (25); गीता में श्रद्धा और ज्ञान का सम्बन्ध (27); सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र का पूर्वापर सम्बन्ध (27); बौद्धदर्शन
और गीता का दृष्टिकोण (28); सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की पूर्वापरता (28); साधन-त्रय में ज्ञान का स्थान (29); सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का पूर्वापर सम्बन्धभी एकांतिक नहीं (30); ज्ञान और क्रिया के सहयोग से मुक्ति (31); वैदिक परम्परा में ज्ञान और क्रिया के समन्वय से मुक्ति (33); बौद्ध-विचारणा में प्रज्ञा और शील का सम्बन्ध (33); तुलनात्मक-दृष्टि से विचार (34); मानवीय-प्रकृति और त्रिविध साधनापथ (35)। अध्याय : 3 अविद्या (मिथ्यात्व)
63-72 मिथ्यात्व का अर्थ (38); जैन-दर्शन में मिथ्यात्व के प्रकार-एकान्त (38); विपरीत (39); वैनयिक (39); संशय (39); अज्ञान (40);
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