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________________ भारतीय आचार- दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन साधना में कोई मूल्य नहीं है । सूत्रकृतांग एवं उत्तराध्ययन में स्पष्ट कहा गया है कि कोई भले ही नग्नावस्था में फिरे या मास के अन्त में एक बार भोजन करे, लेकिन यदि वह माया से युक्त है, तो बार-बार गर्भवास को प्राप्त होगा, अर्थात् वह बन्धन से मुक्त नहीं होगा 140 जो अज्ञानी मास-पास के अन्त में कुशाग्र जितना आहार ग्रहण करता है, वह वास्तविक धर्म की सोलहवीं कला के बराबर भी नहीं है। 41 जैन- दृष्टि स्पष्ट कहती है कि बन्धन या पतन का कारण राग-द्वेषयुक्त दृष्टि है, मूर्च्छा या आसक्ति है, न कि काम-भोग । विकृति के कारण तो काम-भोग के पीछे निहित राग या आसक्ति के भाव ही हैं, काम-भोग स्वयं नहीं । उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है, 'काम-भोग किसी को न तो सन्तुष्ट कर सकते हैं, न किसी में विकार पैदा कर सकते हैं, किन्तु जो काम - भोगों में राग-द्वेष करता है, वही उस रागद्वेषति मोह से विकृत हो जाता है। 42 जैन -दृष्टि नैतिक आचरण के क्षेत्र में जिसका निषेध करती है, वह तो आसक्ति या राग-द्वेष के भाव हैं । यदि पूर्ण अनासक्त-अवस्था में भोग सम्भव हो, तो उसका उन भोगों से विरोध नही है, लेकिन वह यह मानती है कि भोगों के बीच रहकर, भोगों को भोगते हुए उनमें अनासक्त-भाव रखना असम्भव चाहे न हो, लेकिन 'सुसाध्य भी नहीं है, अतः काम-भोगों के निषेध का साधनात्मक मूल्य अवश्य मानना होगा। साधना का लक्ष्य पूर्ण अनासक्ति या वीतरागावस्था है। काम-भोगों का परित्याग उसकी उपलब्धि का साधन है। यदि यह साधन साध्य से संयोजित है, साध्य की दिशा में प्रयुक्त किया जा रहा है, तब तो वह ग्राह्य है, अन्यथा अग्राह्य है। 1 बौद्ध - दृष्टिकोण - बौद्ध- परम्परा में वैराग्यवाद और भोगवाद में समन्वय खोजा गया है । बुद्ध मध्यममार्ग के द्वारा इसी समन्वय के सूत्र को प्रस्तुत करते हैं । अंगुत्तरनिकाय में कहा है, भिक्षुओं ! तीन मार्ग हैं - 1 शिथिल मार्ग, 2. कठोर मार्ग और 3 मध्यम मार्ग । भिक्षुओं ! किसी-किसी का ऐसा मत होता है, ऐसी दृष्टि होती हैह-काम-१ प्र-भोगों में दोष नहीं है । वह काम-भोगों में जा पड़ता है। भिक्षुओं! यह शिथिल मार्ग कहलाता है। भिक्षुओं ! कठोर मार्ग कौनसा है ? भिक्षुओं ! कोई-कोई नग्न होता है, वह न मछली खाता है, न मांस खाता है, न सुरा पीता है, न मेरय पीता है, न चावल का पानी पीता है। वह या तो एक ही घर से लेकर खानेवाला होता है या एक ही कोर खाने वाला; दो घरों से लेकर खाने वाला होता है या दो ही कौर खाने वाला .... . सात घरों से लेकर खाने वाला होता है या सात कौर खाने वाला। वह दिन में एक बार भी खाने वाला होता है, दो दिन में एक बार भी खाने वाला होता है. . सात दिन में एक बार भी खाने वाला होता है, इस प्रकार वह पन्द्रह दिन में एक बार खाकर भी रहता है। भात खाने वाला भी होता है, आचाम खाने वाला भी होता है, खली खानेवाला भी होता है, तिनके (घास) खानेवाला भी होता है, गोबर खानेवाला भी 160 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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