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________________ 158 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन करता है, जबकि मन्दबुद्धि अविवेकीजन श्रेय को छोड़कर शारीरिक योग-क्षेम के निमित्त प्रेय (भोगवाद) का वरण करता है। 30 भोगवाद और वैराग्यवाद भारतीय नैतिक-चिन्तन की आधारभूत धारणाएँ हैं। वैराग्यवाद शरीर और आत्मा अथवा वासना और बुद्धि के द्वैत पर आधारित धारणा है। वह यहमानता है कि आत्मलाभ या चिन्तनमय जीवन के लिए वासनाओं का परित्यागआवश्यक है। वासनाएँ ही बन्धन का कारण हैं, समस्त दुःखों की मूल हैं। वासनाएँ इन्द्रियों के माध्यम से ही अपनी मांगों को प्रस्तुत करती हैं और उनके द्वारा ही अपनी पूर्ति चाहती है, अतः शरीर और इन्द्रियों की मांगों को ठुकराना श्रेयस्कर है। बैन्थम वैराग्यवाद के सम्बन्ध में लिखते हैं कि उन (वैराग्यवादियों) के अनुसार कोई भी चीज, जो इन्द्रियों को तुष्ट करती है, घृणित है और इन्द्रियों को तुष्ट करना अपराध है। 1 इसके विपरीत, भोगवाद यह मानता है कि जो शरीर है, वही आत्मा है, अतः शरीर की माँगों की पूर्ति करना उचित एवं नैतिक है। भोगवाद बुद्धि से ऊपर वासना का शासन स्वीकार करता है। उसकी दृष्टि में बुद्धि वासनाओं की दासी है। उसे वही करना चाहिए, जिससे वासनाओं की पूर्ति हो। औपनिषदिक-चिन्तन और जैन, बौद्ध एवं गीता के आचार-दर्शनों के विकास के पूर्व ही भारतीय-चिन्तन में ये दोनों विधाएँ उपस्थित र्थी । भारतीय नैतिक-चिन्तन में चार्वाक और किसी सीमा तक वैदिक-परम्परा भोगवाद का और जैन-बौद्ध एवं किसी सीमा तक सांख्य-योग की परम्परा संन्यासमार्ग का प्रतिनिधित्व करती है। भोगवाद प्रवृत्तिमार्ग है और वैराग्यवाद या संन्यासमार्ग निवृत्तिमार्ग है। वैराग्यवादी विचार-परम्परा का साध्य चित्त-शान्ति, आध्यात्मिक-परितोष, आत्म-लाभ एवं आत्म-साक्षात्कार है, जिसे दूसरे शब्दों में मोक्ष, निर्वाण या ईश्वरसाक्षात्कार भी कहा जा सकता है। इस साध्य के साधन के रूप में वे ज्ञान को स्वीकार करते हैं और कर्म का निषेध करते हैं। विवेच्य आचार-दर्शनों में बौद्ध एवं जैन-परम्पराओं को निश्चय ही वैराग्यवादी-परम्पराएँ कहा जा सकता है। इतना ही नहीं, यदि हम भोगवाद का अर्थ वासनात्मक-जीवन लेते हैं, तो गीता की आचार-परम्परा को भी वैराग्यवादी-परम्परा ही मानना होगा, लेकिन गहराई से विचार करने पर विवेच्य आचार-दर्शनों को वैराग्यवाद के उस कठोर अर्थ में नहीं लिया जा सकता, जैसा कि आमतौर पर समझा जाता है। वैराग्यवाद के समालोचक वैराग्यवाद का अर्थ देह-दण्डन, इन्द्रिय-निरोध और शरीर की माँगों का ठुकराना मात्र करते हैं ; लेकिन जैन, बौद्ध और गीता के आचार-दर्शनों में वैराग्यवाद को देह-दण्डन या शरीर-यंत्रणा के अर्थ में स्वीकार नहीं किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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