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________________ 138 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन रखने की बात है कि जैन-दर्शन की तप साधना योग-साधना से भिन्न नहीं है। पतंजलि ने जिस अष्टांग-योगमार्ग का उपदेश दिया, वह कुछ तथ्यों को छोड़कर जैन-विचारणा में भी उपलब्ध है। अष्टांग-योगऔर जैन-दर्शन-योग-दर्शन में योग के आठ अंग माने गए हैं1. यम, 2. नियम, 3. आसन, 4. प्राणायाम, 5. प्रत्याहार, 6. धारणा, 7. ध्यान और 8. समाधि। इनका जैन-विचारणा से कितना साम्य है, इस पर विचार कर लेना उपयुक्त होगा। __ 1. यम-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-ये पंच यम हैं। जैनदर्शन में ये पांचों यमपंच महाव्रत कहे गए हैं। जैन-दर्शन और योग-दर्शन में इनकी व्याख्याएँ समान हैं। 2.नियम-नियम भी पाँच है-1.शौच, 2. सन्तोष, 3. तप, 4. स्वाध्याय और 5. ईश्वरप्रणिधान। जैन-दर्शन में ये पाँचों नियमप्रसंगान्तरसे मान्य हैं। जैन-दर्शन में नियम के स्थान पर योग-संग्रहका विवेचन उपलब्ध है। जैन-आगमसमवायांग में 32 योग-संग्रह माने हैं, यथा-1. अपने किए हुए पापों की गुरुजनों के पास आलोचना करना। 2. किसी की आलोचना सुनकर किसी और के पास न कहना। 3. कष्ट आने पर धर्म में दृढ़ रहना। 4. किसी की सहायता की अपेक्षा न करते हुए तप करना। 5. ग्रहण-शिक्षा और आसेवनशिक्षा का पालन करना। 6. शरीर की निष्प्रतिक्रमता। 7. पूजा आदि की आशा से रहित होकर अज्ञान तप करना। 8. लोभपरित्याग। 9. तितिक्षा सहन करना। 10. ऋजुता (सरलता)। 11. शुचि (सत्य-संयम)। 12. सम्यग्दृष्टि होना। 13. समाधिस्थ होना। 14. आचार का पालन करना। 15. विनयशील होना। 16. धृतिपूर्वक मतिमान होना। 17. संवेगयुक्त होना। 18. प्रनिधि- माया (कपट) न करना । 19. सुविधिसदनुष्ठान । 20. संवरयुक्त होना। 21. अपने दोषों का निरोध करना । 22. सब कामों (विषयों) से विरक्त रहना। 23. मूलगुणों का शुद्ध पालन करना। 24. उत्तरगुणों का शुद्ध पालन करना। 25. व्युत्सर्ग करना। 26. प्रमाद न करना। 27. क्षण-क्षण में सामाचारीअनुष्ठान करना। 28. ध्यान-संवरयोग करना। 29. मारणान्तिक-कष्ट आने पर भी अपने ध्येय से विचलित न होना। 30. संग का परित्याग करना। 31. प्रायश्चित्त ग्रहण करना। 32. मरणकाल में आराधक बनना। 3. आसन-स्थिर एवं बैठने के सुखद प्रकार-विशेष को आसन कहा गया है। जैन-परम्परा में बाह्य-तप के पांचवें काया-क्लेश में आसनों का भी समावेश है। औपपातिक-सूत्र एवं दशाश्रुतस्कंधसूत्र में वीरासन, भद्रासन, गोदुहासन और सुखासन आदि अनेक आसनों का विवेचन है। 4. प्राणायाम-प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान-ये पाँच प्राणवायु हैं। इन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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