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________________ 126 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन कल्याण का विचार करते हैं 10 और तपस्या से ही लोक में विजय प्राप्त की जाती है। 11. इतनाही नहीं, वे तो तप-रूप साधन को साध्य के तुल्य मानते हुए कहते हैं - “तप ही ब्रह्म है।" जैन साधना में भी तप को आत्म-गुण मानकर उसे साध्य और साधन-दोनों रूप में स्वीकार किया गया है।12 आचार्य मनु कहते हैं कि तपस्या से ऋषिगण त्रैलोक्य के चराचर प्राणियों को देखते हैं, जो कुछ भी दुर्लभ और दुस्तर इस संसार में है, वह सब तपस्या से साध्य है। तपस्या की शक्ति दूरतिक्रम है।14 महापातकी और निम्न आचरण करने वाले भी तपस्या से तप्त होकर किल्विषी-योनि से मुक्त हो जाते हैं। तप की महत्ता के सम्बन्ध में और भी सैकड़ों साक्ष्य हिन्दू आगम-ग्रन्थों से प्रस्तुत किए जा सकते हैं, लेकिन विस्तार-भय से केवल गोस्वामी तुलसीदासजी के दो चरण प्रस्तुत करना पर्याप्त होगा-वे कहते हैं, 'तपसुखप्रद सब दोष नसावा' तथा 'करउजाइ तप इस जिय जानी।' बौद्ध साधना-पद्धति मेंतपकास्थान-यह स्पष्ट तथ्य है कि तप' शब्द आचार के जिस कठोर अर्थ में जैन और हिन्दू-परम्परा में प्रयुक्त हुआ है, वह बौद्ध-साधना में उसकी मध्यममार्गी साधना के कारण उतने कठोर अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुआ है। बौद्ध-साधना में तप का अर्थ है-चित्त-शुद्धि का सतत प्रयास । बौद्ध-साधना तप को प्रयत्न या प्रयास के अर्थ में ही ग्रहण करती है और इसी अर्थ में बौद्ध-साधना तप का महत्व स्वीकार करके चलती है। भगवान् बुद्ध महामंगलसुत्त में कहते हैं कि तप, ब्रह्मचर्य, आर्यसत्यों का दर्शन और निर्वाण का साक्षात्कार-ये उत्तम मंगल हैं। इसी प्रकार, कासिभारद्वाजसुत्त में भी तथागत कहते हैं, मैं श्रद्धा का बीज बोता हूँ, उस पर तपश्चर्या की वृष्टि होती है- शरीर, वाणी से संयम रखता हूँ और आहार से नियमित रहकर सत्य द्वारा मैं (मन-दोषों की) गोड़ाई करता हूँ।” दिट्ठिवज्जसुत्त में शास्ता कहते हैं, "किसी तप या व्रत के करने से किसी के कुशलधर्म बढ़ते हैं, अकुशल धर्म घटते हैं, तो उसे अवश्य करना चाहिए।"18 बुद्ध स्वयं अपने को तपस्वी कहते हैं - "ब्राह्मण! यही कारण है कि जिससे मैं, तपस्वी हूँ।" बुद्ध का जीवन तो कठिनतम तपस्याओं से भरा हुआ है। उनके अपने साधनाकाल एवं पूर्वजन्मों का इतिहास एवं वर्णन, जो हमें बौद्धागमों में उपलब्ध होता है, उनके तपोमय जीवन का साक्षी है। मज्झिमनिकाय महासीहनादसुत्त में बुद्ध सारिपुत्त से अपनी कठिन तपश्चर्या का विस्तृत वर्णन करते हैं। 19 इतना ही नहीं, सुत्तनिपात के पवज्जासुत्त में बुद्ध बिंबिसार (राजा श्रेणिक) से कहते हैं कि अब मैं तपश्चर्या के लिए जा रहा हूँ, उस मार्ग में मेरा मन रमता है। यद्यपि उपर्युक्त तथ्य बुद्ध के जीवन की तप- साधना के महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं, फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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