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________________ 116 भारतीय आधार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन शील का विविध वर्गीकरण" . शील का त्रिविध वर्गीकरण पाँच त्रिकों में किया गया है 1. हीन, मध्यम और प्रणीत के अनुसार शील तीन प्रकार का है। दूसरों की निन्दा की दृष्टि से अथवा उन्हें हीन बताने के लिए पाला गया शील हीन है। लौकिक-शील या सामाजिक नियम-मर्यादाओं का पालन मध्यम-शील है और लोकोत्तर-शील प्रणीत है। एक दूसरीअपेक्षासे, फलाकांक्षासे पालागयाशीलहीन है,अपनी मुक्ति के लिए पाला गयाशील मध्यम है और सभी प्राणियों की मुक्ति के लिए पाला गया पारमिता-शील प्रणीत है। 2. आत्माधिपत्य, लोकाधिपत्य और धर्माधिपत्य की दृष्टि से भीशील तीन प्रकार काहै।आत्म-गौरव या आत्म-सम्मान के लिए पाला गयाशीलआत्माधिपत्य है। लोकनिन्दा से बचने के लिए अथवा लोक में सम्मान अर्जित करने के लिए पाला गया शील लोकाधिपत्य है। धर्म के महत्व, धर्म के गौरव और धर्म के सम्मान के लिए पाला गयाशील धर्माधिपत्य है। 3. परामृष्ट, अपरामृष्ट और प्रतिप्रश्रब्धि के अनुसार शील तीन प्रकार का है। मिथ्यादृष्टि लोगों का आचरणपरामृष्ट-शील है। मिथ्यादृष्टि लोगों में भी जो कल्याणकर या शुभ कर्मों में लगे हुए हैं, उनका शील अपरामृष्ट है, जबकि सम्यक्दृष्टि के द्वारा पाला गया शील प्रतिप्रश्रब्धि-शील है। 4. विशुद्ध, अशुद्ध और वैमतिक के अनुसार शील तीन प्रकार का है। आपत्ति या दोष से रहित शील विशुद्धशील है।आपत्ति या दोषयुक्त शील अविशुद्ध-शील है। दोष या उल्लंघन सम्बन्धी बातों के बारे में जो संदेह में पड़ गया है, उसकाशील वैमतिक-शील है। 5.शैक्ष्य, अशैक्ष्य और न-शैक्ष्य-न-अशैक्ष्य के अनुसारशील तीन प्रकार का है । मिथ्यादृष्टि काशीलन-शैक्ष्य-नअशैक्ष्य है, सम्यक्दृष्टि काशील शैक्ष्य है और अर्हत् का शील अशैक्ष्य है। विशुद्धिमग्ण में शील का चतुर्विध औरपंचविध वर्गीकरणभीअनेकरूपों में वर्णित है, लेकिन विस्तार-भय एवं पुनरावृत्ति के कारण यहाँ उनका उल्लेख करना आवश्यक नहीं है। शील का प्रत्युपस्थान - काया की पवित्रता, वाणी की पवित्रता और मन की वित्रता-ये तीन प्रकार की पवित्रताएँ शील के जानने का आकार (प्रत्युपस्थान) हैं, अर्थात् कोई व्यक्ति शीलवान् है या दुःशील है, यह उसके मन, वचन और कर्म की पवित्रता के आधार पर ही जाना जाता है। शील कापदस्थान-जिन आधारों पर शील ठहरता है, उन्हें शील का पदस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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