________________
सम्यक्चारित्र (शील)
113
तथा समभाव की प्राप्ति सामायिक-चारित्र है। व्यावहारिक-दृष्टि से हिंसादि बाह्य-पापों से विरति भी सामायिक-चारित्र है। सामायिक-चारित्र दो प्रकार का है(अ) इत्वरकालिक-जो थोड़े समय के लिए ग्रहण किया जाता है और (ब) यावत्कथितजो सम्पूर्ण जीवन के लिए ग्रहण किया जाता है।
2. छेदोपस्थापनीय-चारित्र-जिस चारित्र के आधार पर श्रमण-जीवन में वरिष्ठता और कनिष्ठता का निर्धारण होता है, वह छेदोपस्थापनीय-चारित्र है। यह सदाचरण का बाह्य रूप है, इसमें आचार के प्रतिपादित नियमों का पालन करना होता है और नियम के प्रतिकूल आचरण पर दण्ड देने की व्यवस्था होती है। ___3. परिहारविशुद्धि-चारित्र-जिस आचरण के द्वारा कर्मों का अथवा दोषों का परिहार होकर निर्जरा के द्वारा विशुद्धि हो, वह परिहारविशुद्धि-चारित्र है।
4.सूक्ष्मसम्पराय-चारित्र-जिस अवस्था में कषाय-वृत्तियाँ क्षीण होकर किंचित् रूप में ही अवशिष्ट रही हों, वह सूक्ष्मसम्पराय-चारित्र है।
5. यथाख्यात-चारित्र-कषाय आदि सभी प्रकार के दोषों से रहित निर्मल एवं विशुद्ध चारित्र यथाख्यात-चारित्र है। यथाख्यात-चारित्र निश्चय-चारित्र है। चारित्र का त्रिविध वर्गीकरण
वासनाओं के क्षय, उपशम और क्षयोपशम के आधार पर चारित्र के तीन भेद हैं । 1. क्षायिक, 2.औपशमिक और 3. क्षायोपशमिक।क्षायिक-चारित्र हमारे आत्मस्वभाव से प्रतिफलित होता है। इसका स्रोत हमारी आत्मा ही है, जबकि औपशमिक-चारित्र में यद्यपि आचरण सम्यक् होता है, लेकिन आत्मस्वभाव से प्रतिफलित नहीं होता। वह कर्मों के उपशम से प्रकट होता है। आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में क्षायिकचारित्र में वासनाओं का निरसन हो जाता है, जबकि औपशमिकचारित्र में मात्र वासनाओं का दमन होता है। वासनाओं का दमन और वासनाओं के निरसन में जो अन्तर है, वहीअन्तर औपशमिक और क्षायिक-चारित्र में है। नैतिक-साधना का लक्ष्य वासनाओं का दमन नहीं, वरन् उनका निरसन या परिष्कार है, अतः चारित्र का क्षायिक प्रकार ही नैतिक एवं आध्यात्मिक-दृष्टि से महत्वपूर्ण सिद्ध होता है।
चारित्र के उपर्युक्त सभी प्रकार आत्मशोधन की प्रक्रियाएँ हैं। जो प्रक्रिया जितनी अधिक मात्रा में आत्मा को राग, द्वेष और मोह से निर्मल बनाती है, वासनाओं की आग से तप्त मानस को शीतल करती है और संकल्पों और विकल्पों के चंचल झंझावात से बचाकर चित्त को शान्ति एवं स्थिरता प्रदान करती है और सामाजिक एवं वैयक्तिक-जीवन में समत्व
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org