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________________ 112 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन तथा उस शुद्धि के कारणभूत नियमों से है। सामान्यतया, व्यवहारचारित्र में पंच महाव्रतों, तीन गुप्तियों, पंच समितियों आदि का समावेश है। व्यवहारचारित्र भी दो प्रकार का है-1. सम्यक्त्वाचरण और 2. संयमाचरण। व्यवहारचारित्र के प्रकार-चारित्र को देशव्रतीचारित्र और सर्वव्रतीचारित्र-ऐसे दो वर्गों में विभाजित किया गया है। देशव्रतीचारित्र का सम्बन्ध गृहस्थ-उपासकों से और सर्वव्रतीचारित्र का सम्बन्ध श्रमण-वर्ग से है। जैन-परम्परा में गृहस्थाचार के अन्तर्गत अष्ट मूलगुण, षट्कर्म, बारह व्रत और ग्यारह प्रतिमाओं का पालन आता है। श्वेताम्बर - परम्परा में अष्टमूलगुणों के स्थान पर सप्तव्यसन-त्याग एवं 35 मार्गानुसारी गुणों का विधान मिलता है। इसी प्रकार, उसमें षट्कर्म को षडावश्यक कहा गया है। श्रमणाचार के अन्तर्गत पंच महाव्रत, रात्रिभोजन-निषेध, पंच समिति, तीन गुप्ति, दस यतिधर्म, बारह अनुप्रेक्षाएँ, बाईस परीषह, अट्ठाइस मूल गुण, बावन अनाचार आदि का विवेचन उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त, भोजन, वस्त्र, आवास-सम्बन्धी विधि-निषेध हैं। इन सबका विवेचन गृहस्थाचार और श्रमणाचार के प्रसंगों में हुआ है। चारित्र का वर्गीकरण गृहस्थ और श्रमण-धर्म के अतिरिक्त अन्य अपेक्षाओं से भी हुआ है। चारित्र का चतुर्विध वर्गीकरण-स्थानांगसूत्र में निर्दोष आचरण की अपेक्षा से चारित्र का चतुर्विध वर्गीकरण किया गया है। जैसे घट चार प्रकार के होते हैं, वैसे ही चारित्र भी चार प्रकार का होता है। घट के चार प्रकार हैं - 1. भिन्न (फूटा हुआ), 2. जर्जरित, 3. परिस्रावी और 4. अपरिस्रावी। इसी प्रकार, चारित्र भी चार प्रकार का होता है -1. फूटे हुए घड़े के समान-अर्थात्, जब साधक अंगीकृत महाव्रतों को सर्वथा भंग कर देता है, तो उसका चारित्र फूटे घड़े के समान होता है। नैतिक-दृष्टि से उसका मूल्य समाप्त हो जाता है। 2. जर्जरित घट के समान-सदोषचारित्र जर्जरित घट के समान होता है। जब कोई मुनि ऐसा अपराध करता है, जिसके कारण उसकी दीक्षा-पर्याय का छेद किया जाता है, तो ऐसे मुनि का चारित्र जर्जरित घट के समान होता है। 3. परिस्रावी-जिस चारित्र में सूक्ष्म दोष होते हैं, वह चारित्रपरिस्रावी कहा जाता है। 4.अपरिस्रावी-निर्दोष एवं निरतिचार चारित्र अपरिस्रावी कहा जाता है।' ___ चारित्र का पंचविधवर्गीकरण-तत्त्वार्थसूत्र (9/18) के अनुसार चारित्र पाँच प्रकार का है- 1. सामायिक-चारित्र, 2. छेदोपस्थापनीय-चारित्र, 3. परिहारविशुद्धि चारित्र, 4. सूक्ष्मसम्पराय-चारित्र और 5. यथाख्यात-चारित्र। ___ 1. सामायिक-चारित्र-वासनाओं, कषायों एवं राग-द्वेष की वृत्तियों से निवृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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