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________________ भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन नैतिक जीवन ही । आत्मा या स्व का ज्ञान इस स्तर पर इसलिए असम्भव है कि एक तो आत्मा अमूर्त एवं अतीन्द्रिय है। दूसरे, इन्द्रियाँ बहिर्दृष्टा हैं, वे आन्तरिक 'स्व' को नहीं जान सकर्ती । तीसरे, इन्द्रियों की ज्ञान-शक्ति 'स्व' पर आश्रित है, वे 'स्व' के द्वारा जानती हैं, अतः 'स्व' को नहीं जान सकती। जैसे आँख स्वयं को नहीं देख सकती, उसी प्रकार जानने वाली इन्द्रियाँ जिसके द्वारा जानती हैं, उसे नहीं जान सकतीं। 98 ज्ञान का यह स्तर नैतिक जीवन की दृष्टि से इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि इस स्तर पर आत्मा पूरी तरह पराश्रित होती है। वह जो कुछ करता है, वह किन्हीं बाह्यतत्त्वों पर आधारित होकर करता है; अतः ज्ञान के इस स्तर में आत्मा परतन्त्र है। जैन- विचारकों ने आत्मा की दृष्टि से इसे परोक्षज्ञान ही माना है, क्योंकि इसमें इन्द्रियादि निमित्त की अपेक्षा है। बौद्धिक ज्ञान - ज्ञान का दूसरा स्तर बौद्धिक ज्ञान या आगम-ज्ञान का है। ज्ञान बौद्धिक स्तर भी आत्म-साक्षात्कार या स्व-बोध की अवस्था तो नहीं है, केवल परोक्ष रूप में इस स्तर पर आत्मा यह जान पाता है कि वह क्या नहीं है। यद्यपि इस स्तर पर ज्ञान के विषय आन्तरिक होते हैं, तथापि इस स्तर पर विचारक और विचार का द्वैत रहता है । ज्ञायक आत्मा आत्मकेन्द्रित न होकर पर - केन्द्रित होता है । यद्यपि यह पर (अन्य ) बाह्य वस्तु नहीं, स्वयं उसके ही विचार होते हैं, लेकिन जब तक पर - केन्द्रितता है, तब तक सच्ची अप्रमत्तता का उदय नहीं होता और जब तक अप्रमत्तता नहीं आती, आत्मसाक्षात्कार या परमार्थ का बोध नहीं होता है। जब तक विचार है, विचारक विचार स्थित होता है और 'स्व' में स्थित नहीं होता और 'स्व' में स्थित हुए बिना आत्मा का साक्षात्कार नहीं होता । यद्यपि इस स्तर पर 'स्व' का ग्रहण नहीं होता, लेकिन पर (अन्य ) पर के रूप में बोध और पर का निराकरण अवश्य होता है। इस अवस्था में जो प्रक्रिया होती है, वह जैन- विचारणा में भेद - विज्ञान कही जाती है। आगम-ज्ञान भी प्रत्यक्ष रूप से तत्त्व या आत्मा का बोध नहीं करता है, फिर भी जैसे चित्र अथवा नक्शा मूल वस्तु का निर्देश करने में सहायक होता है, वैसे ही आगम भी तत्त्वोपलब्धि या आत्मज्ञान का निर्देश करते हैं। वास्तविक तत्त्व-बोध तो अपरोक्षानुभूति से ही सम्भव है । जिस प्रकार नक्शा या चित्र मूलवस्तु से भिन्न होते हुए भी उसका संकेत करता है, वैसे ही बौद्धिक ज्ञान या आगम भी मात्र संकेत करते हैं - लक्ष्यते न तु उच्यते । - आध्यात्मिक ज्ञान - ज्ञान का तीसरा स्तर आध्यात्मिक ज्ञान है। इसी स्तर पर आत्म-बोध, स्व का साक्षात्कार अथवा परमार्थ की उपलब्धि होती है। यह निर्विचार या विचारशून्यता की अवस्था है। इस स्तर पर ज्ञाता और ज्ञेय का भेद मिट जाता है । ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय, सभी 'आत्मा' होता है। ज्ञान की यह निर्विचार, निर्विकल्प, निराश्रित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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