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________________ भारतीय आचारदर्शन में ज्ञान की विधाएँ निर्धारण करने में उसकी मनोवैज्ञानिक प्रकृति का ध्यान रखना आवश्यक मानते हैं। इनके अनुसार, मानव की मनोवैज्ञानिक प्रकृति ही उसके परममंगल का निर्देश कर सकती है, अत: उसको दृष्टि में रखते हुए ही नीतिशास्त्र को नैतिक आदर्श का निर्धारण करना चाहिए। ह्यूम, बेन्थम, मिल प्रभृति सुखवादी विचारक इस पद्धति का अनुसरण करते हैं। उपर्युक्त अनुभवमूलक विधियों के अतिरिक्त कुछ विचारकों ने आचारदर्शन के सम्यक् अध्ययन के लिए दार्शनिक-विधि की स्थापना की है। दार्शनिक विधि- जिन विचारकों ने आचारदर्शन को तत्त्वमीमांसा पर आधारित माना और नैतिक आदर्श को मानवचेतना की तात्त्विक-सत्ता से अनुमित किया, उन्होंने आचारदर्शन की विधि को दार्शनिक या चिन्तनपरक माना है। इन विचारकों में हेगल, ग्रीन आदिअध्यात्मवादी विचारक प्रमुख हैं। आचारदर्शन की उपर्युक्त अध्ययनविधियों को अन्य प्रकार से भी वर्गीकृत किया जा सकता है। आचारदर्शन की अनुभवमूलक विधियाँ वैज्ञानिक-विधियों का ही रूप हैं और ऐन्द्रिक-ज्ञान के अनुभवमूलक आधारों पर खड़ी हुई हैं। इसके विपरीत, दार्शनिकविधि चिन्तनपरक या बौद्धिक है। प्रथम वर्ग यथार्थ पर अधिक बल देता है, दूसरा वर्ग आदर्श पर। प्रथम वर्ग में आने वाली सभी विधियाँ सापेक्ष विधियाँ भी कही जा सकती हैं, क्योंकि इनमें नैतिक-प्रत्यय एवं नियम एक सापेक्ष तथ्यही सिद्ध होते हैं। दूसरे वर्ग में आने वाली बौद्धिक-विधि या दार्शनिक-विधि एक निरपेक्ष विधि है, क्योंकि उसमें नैतिक नियम निरपेक्ष माने जाते हैं। इस प्रकार, आचारदर्शन की अध्ययनविधियों को अनुभवमूलक और अनुभवातीत, आगमनात्मक और निगमनात्मक, यथार्थमूलक और आदर्शमूलक, अथवा सापेक्ष और निरपेक्ष किसी भी रूप में देखा जाए, उनका मूल मन्तव्य वही होता है। तुलनात्मक दृष्टि से अनुभवमूलक यथार्थवादी सापेक्ष विधियों को भारतीय-चिन्तन की व्यवहारदृष्टि के समकक्ष मान सकते हैं। अनुभवातीत बुद्धिमूलक आदर्शवादी निरपेक्ष विधि को निश्चयनय या परमार्थदृष्टि के तुल्य माना जा सकता है। 21. भारतीय-आचारदर्शनों में विविध विधियों का समन्वय वस्तुतः, नैतिक-जीवन का उद्देश्य यथार्थ से आदर्श कीओर बढ़ना है और इस रूप में उसके लिए अनुभवमूलक और अनुभवातीत- दोनों ही विधियाँ आवश्यक हैं। जो विचारक इनमें से किसी एक विधि को ही नैतिक-दर्शन की एकमात्र विधि स्वीकार करते हैं, वे नैतिक-दर्शन के समग्र स्वरूप की व्याख्या करने में असमर्थ हैं। यही कारण है कि कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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