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________________ 86 भारतीय आचारदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन नैतिकता कहती है कि कार्य चाहे कर्ता के प्रयोजन की दृष्टि से शुद्ध हो, लेकिन यदि वह लोकविरुद्ध है, तो उसका आचरण नहीं करना चाहिए (यद्यपि शुद्धं तदपि लोकविरुद्धं न समाचरेत्) । वस्तुत:, नैतिकता की व्यवहारदृष्टि आचरण को सामाजिक-सन्दर्भ में परखती है। यह आचरण के शुभाशुभत्व के मापन की समाज-सापेक्ष पद्धति है, जो व्यक्ति के सम्मुख सामाजिक-नैतिकता को प्रस्तुत करती है। सामाजिक-नैतिकता का पालन वैयक्तिक साधना की दृष्टि से इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना समाजव्यवस्था या संघव्यवस्था की दृष्टि से। यही कारण है कि वैयक्तिक-साधना की परिपूर्णता के पश्चात् भी जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शन समान रूप से इसके परिपालन को आवश्यक मानते हैं। आचरण के समग्र विधि-विधान एवं विविधताएँ व्यावहारिक-नैतिकता के विषय हैं।व्यावहारिक-नैतिकता क्रिया है, अत: आचरण कैसे करना चाहिए, इसका निर्धारण व्यावहारिक-नैतिकता का विषय है। गृहस्थ एवं संन्यास-जीवन के सारे विधि-विधान, जो व्यक्ति और समाज एवं व्यक्ति और उसके परिवेश के मध्य सांग संतुलन को बनाए रखने के लिए प्रस्तुत किए जाते हैं, वे व्यावहारिक-नैतिकता के क्षेत्र में आते हैं। व्यावहारिक-नैतिकता, नैतिकता की सापेक्षित प्रणाली है। वह हमारे सामने सापेक्ष आचारविधि प्रस्तुत करती है। 15. नैतिकता के क्षेत्र में व्यवहारदृष्टि के आधार नैश्चयिक-नैतिकता एक निरपेक्ष तथ्य है और व्यावहारिक-नैतिकता सापेक्ष है। व्यवहारदृष्टि से नैतिक-आचरण देश, काल, वैयक्तिक-स्वभाव, शक्ति और रुचि पर निर्भर करता है। इनकी भिन्नता के आधार पर व्यावहारिक-आचार में भी भिन्नता सम्भव है। प्रश्न उपस्थित होता है कि इस बात का निश्चय कैसे किया जाए कि किस देश, काल एवं परिस्थिति में कैसा आचरण उचित है। जैन-विचारकों ने इस प्रश्न पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया है। वे कहते हैं कि निश्चयदृष्टि से तो संकल्प (अध्यवसाय) की शुभता ही नैतिकता का आधार है, लेकिन व्यवहार के क्षेत्र में एवं सामाजिक-जीवन में आचरण का मूल्यांकन करने एवं आचरण के नियमों का निर्धारण करने के पाँच आधार माने गए हैं(1) आगम, (2) श्रुत, (3) आज्ञा, (4) धारणा और (5) जीत। इन्हीं पाँच आधारों पर व्यवहार के भी पाँच भेद होते हैं, जो निम्नानुसार हैं___1. आगम-व्यवहार- किस देश, काल एवं वैयक्तिक-परिस्थिति में किस प्रकार का आचरण करना चाहिए, इसका निर्देश आगम-ग्रन्थों में मिलता है, अत: आगमों में वर्णित नियमों के अनुसार आचरण करना आगम-व्यवहार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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