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भारतीय आचारदर्शन में ज्ञान की विधाएँ
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आचार के क्षेत्र में व्यवहारदृष्टि
नैतिकता के क्षेत्र में व्यवहारदृष्टि आचरण के बाह्य (समाजसापेक्ष) पक्ष पर बल देती है। उसमें आचरण की एकरूपता नहीं, वरन् विविधता होती है। पं. सुखलालजी के शब्दों में, 'व्यावहारिक-आचार ऐसा एकरूप नहीं (है)। निश्चय-आचार की भूमिका से निष्पन्न ऐसे भिन्न-भिन्न देश-काल-जाति-स्वभाव-रुचि आदि के अनुसार कभी-कभी परस्पर विरुद्ध दिखाई देने वाले आचार व्यवहारिक-आचार की कोटि में गिने जाते हैं।'43 व्यावहारिक-आचार देश, काल एवं व्यक्ति-सापेक्ष होता है। उसका स्वरूप परिवर्तनशील होता है। वह तो उन परिधियों के समान है, जो समकेन्द्रक होते हुए भी देशकालरूपी त्रिज्या की विभिन्नता के कारण अलग-अलग होती है। आचारदर्शन के क्षेत्र में व्यवहारदृष्टि कर्ता के प्रयोजन को गौण कर कर्म-परिणामों पर लोकहित की दृष्टि से विचार करती है। देशकालगत आचरण के नियमों का बाह्य-स्वरूप निश्चित करना व्यावहारिक-दृष्टि का कार्य है। वह देश, काल एवं वैयक्तिक-परिस्थितियों के आधार पर नैतिक-आचरण के बाह्य-स्वरूप का निर्धारण करती है। जहाँ तक आचरण के शुभत्व और अशुभत्व के मूल्यांकन का प्रश्न है, आचरण के आन्तरिक पक्ष या कर्ता के प्रयोजन के आधार पर उसके शुभत्व का मूल्यांकन नैतिकता की निश्चयदृष्टि करती है, जबकि आचरण के बाह्यपक्ष या परिणाम के आधार पर उसके शुभत्व का निर्णय नैतिकता की व्यवहारदृष्टि करती है। जैनविचारणा के अनुसार कर्मों के इस द्विविध मूल्यांकन में ही उसका समग्र मूल्यांकन सम्भव होता है। यद्यपि यह सम्भव है कि कोई कर्म निश्चयदृष्टि से शुभ या नैतिक होते हुए भी व्यवहारदृष्टि से अशुद्ध या अनैतिक हो सकता है। उदाहरणार्थ, मुनि का वह व्यवहार, जो शुद्ध मनोभाव और आगमिक-आज्ञाओं के अनुकूल होते हुए भी यदि लोकनिन्दा यालोकघृणा का कारण है, तो वह निश्चयदृष्टि से शुद्ध होते हुए भी व्यवहारदृष्टि से अशुद्ध ही माना जाएगा। इसी प्रकार, कोई कर्म व्यवहारदृष्टि से शुद्ध या नैतिक प्रतीत हुए भी निश्चयदृष्टि से अशुद्ध या अनैतिक हो सकता है; जैसे, फलाकांक्षा से किया हुआ तप अथवा यश-प्रतिष्ठा की इच्छा से किया हुआ परोपकार। भारतीय-आचारदर्शन इस तथ्य को स्वीकार करता है कि नैतिक-आचरण में मात्र कर्ता का विशुद्ध प्रयोजन ही पर्याप्त नहीं है, उसमें लोकव्यवहार की दृष्टि भी आवश्यक है।
व्यावहारिक-नैतिकताकासम्बन्ध आचरण के उन सामाजिक-नियमों एवं विधिविधानों से है, जिनका समाज की इकाई के रूप में व्यक्ति के द्वारा पालन किया जाना चाहिए। समाजदृष्टि की व्यावहारिक-नैतिकता में शुभाशुभत्वका आधार है। व्यावहारिक
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