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भारतीय आचारदर्शन में ज्ञान की विधाएँ
भी निश्चयदृष्टि से आचार की भिन्नता हो सकती है। वस्तुत:, आचारदर्शन के क्षेत्र में निश्वय-आचार वह केन्द्र है, जिसके आधार से व्यावहारिक-आचार के वृत्त बनते हैं। जिस प्रकार एक केन्द्र से खींचे गए अनेक वृत्त भिन्न-भिन्न प्रतीत होते हुए भी अपने केन्द्र की दृष्टि से एक ही माने जाते हैं, उनमें परिधिगत विभिन्नता होते हुए भी केन्द्रगत एकता होती है। जैन-दृष्टि के अनुसार, 'निश्चय-आचार समग्र बाह्य आचरण का केन्द्र होता है।'" बाहा आचरण का शुभत्व और अशुभत्व इसी आभ्यन्तरिक केन्द्र पर निर्भर है। शुद्धानेश्वय, जो कि तत्त्वमीमांसा की एक विधि है, जब नैतिकता के क्षेत्र में प्रयुक्त की जाती है, तो वह दो बातें प्रस्तुत करती है
1. नैतिक आदर्श या साध्य का शुद्ध स्वरूप। 2. नैतिक साध्य का नैतिक साधना से अभेद।
नैतिक साध्य वह स्थिति है, जहाँ पहुँचने पर नैतिकता समाप्त हो जाती है, क्योंकि उसके आगे कुछ प्राप्तव्य नहीं है, कुछ चाहना नहीं है और इसलिए कोई नैतिकता नहीं है। क्योंकि नैतिकता के लिए 'चाहिए' या 'आदर्श' आवश्यक है, अत: नैतिक साध्य उस स्थान पर स्थित है, जहाँ तत्त्वमीमांसा और आचारदर्शन मिलते हैं, अत: नैतिक साध्य की व्याख्या विशुद्ध पारमार्थिक-दृष्टि से ही सम्भव है। दूसरीजोर, नैतिक साध्य पूर्णता की वह स्थिति है कि जब हम उस साध्य की भूमिका पर स्थित होकर विचार करते हैं, तो वहाँ साध्य, साधक और साधनापथ का अभेद हो जाता है, क्योंकि जब आदर्श उपलब्ध हो जाता है, तब आदर्श आदर्श नहीं रह जाता और साधक साधक नहीं रह जाता, न साधनापथ साधनापथही रह जाता है। नैतिक-पूर्णता की अवस्था में साधक, साध्य और साधनापथ का विभेद टिक नहीं पाता। यदिसाधक है, तो उसका साध्य होगा और यदि साध्य है, तो फिर नैतिक-पूर्णता कैसी ? साध्य, साधक और साधना सापेक्ष पद हैं। यदि एक है, तो दूसरा है। साध्य के अभाव में न साधक साधक होता है और न साधनापथ साधनापथ। उस अवस्था में तो मात्र विशुद्ध सत्ता है। यदि पूर्वावस्था की दृष्टि से उपचाररूप में कहना ही हो, तो कह सकते हैं कि उस दृष्टि से साध्य भी आत्मा है, साधक भी आत्मा है और ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप साधना मार्ग भी आत्मा है। तीसरे, आवरण का दिखाई देने वाला बाह्य रूप उसके लिए महत्वपूर्ण नहीं होता। आचरण के विधि-विधानों से पारमार्थिक या निश्चय-आधार का कोई सम्बन्ध नहीं है। उसका सम्बन्ध तो मात्र कर्ता की आन्तरिक अवस्थाओं से होता है।
संक्षेप में, नैतिकता की निश्चयदृष्टि का सम्बन्ध वैयक्तिक नैतिकता से है। यह
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