SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय आचारदर्शन में ज्ञान की विधाएँ 11 (लोकदृष्टि) की अपेक्षा से तो वह मधुर कहा जाता है, लेकिन निश्चयनय (तत्त्वदृष्टि) की अपेक्षासे उसमें पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श होते हैं। इस प्रकार, अनेक विषयों को लेकर उनका निश्चयदृष्टि और व्यवहारदृष्टि से विश्लेषण किया गया है। वस्तुतः, निश्चय एवं व्यवहार-दृष्टियों का विश्लेषण यही बताता है कि सत् न उतना ही है, जितना वह हमें इन्द्रियों के माध्यम से प्रतीत होता है और न उतना ही है, जितना कि बुद्धि उसके स्वरूप का निश्चय कर पाती है। सत् के समग्र स्वरूप को समझने के लिए ऐन्द्रिक-ज्ञान और बौद्धिक-ज्ञान, दोनों ही आवश्यक हैं। ___ एक अन्य अपेक्षा से, जैन-दर्शन में ज्ञान की तीन विधाएँ मानी गई हैं। जैन-दर्शन में ज्ञान पाँच प्रकार का है- (1) मतिज्ञान, (2) श्रुतज्ञान, (3) अवधिज्ञान, (4) मन:पर्ययज्ञान और (5) केवलज्ञान। इनमें मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परोक्षज्ञान हैं और शेष तीन अपरोक्षज्ञान हैं। अपरोक्षज्ञान में आत्मा को सत् का बिना किसी साधन के सीधा बोध होता है। इसे अपरोक्षानुभूति भी कहा जा सकता है। शेष दो, मतिज्ञान और श्रुतज्ञान क्रमश: अनुभूत्यात्मक-ज्ञान और बौद्धिक-ज्ञान से सम्बन्धित हैं। मतिज्ञान में ज्ञान के साधन मन और इन्द्रियाँ हैं। 10 इस आधार पर मतिज्ञान को अनुभूत्यात्मक-ज्ञान और श्रुतज्ञान को तार्किक या बौद्धिक-ज्ञान कहा जा सकता है। तत्त्वार्थसूत्र में 'वितर्क (बुद्धि) को श्रुत कहा है। वैसे 'श्रुतज्ञान का एक अर्थ आगमिक ज्ञान भी माना गया है, लेकिन आगम भी बौद्धिक-ज्ञान ही है, अतः श्रुतज्ञान बौद्धिक-ज्ञान ही है। इस प्रकार, जैन-विचारणा में ज्ञानप्राप्ति के साधनों के रूप में तीन विधाएँ उपस्थित हो जाती हैं- (1) अनुभूति या ऐन्द्रिक-ज्ञान (2) बौद्धिक या आगमिक-ज्ञान और (3) अपरोक्षानुभूति या आत्मिकज्ञान। अपरोक्षानुभूति या आत्मिक-ज्ञान को अन्तर्दृष्टि या प्रज्ञा भी कहा जा सकता है। 3. बौद्ध-दर्शन में ज्ञान की विधाएँ बौद्ध-दर्शन में सत् के स्वरूपकी व्याख्या के लिए प्रमुख रूप से दो दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए हैं। जैनेतर दर्शनों में, सर्वप्रथम पालित्रिपिटक में दो दृष्टियों का वर्णन होता है, जिन्हें जीतार्थ और नेय्यार्थ कहा गया है। अंगुत्तरनिकाय में बुद्ध कहते हैं, 'भिक्षुओं ! ये दो तथागत पर मिथ्यारोप करते हैं। जो नेय्यार्थसूत्र (व्यवहार-भाषा) को नीतार्थसूत्र (परमार्थभाषा) प्रकट करता है और नीतार्थसूत्र (परमार्थ-भाषा) को नेय्यार्थसूत्र (व्यवहार-भाषा) करके प्रकट करता है। बौद्ध-दर्शन की दो प्रमुख शाखाओं-विज्ञानवाद और शून्यवाद में भी शून्य, तथता या सत् के स्वरूप को समझाने के लिए दृष्टिकोणों की शैली का उपयोग हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy