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________________ 58 भारतीय आचारदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन चिन्तन में केवल आचार-नियमों का प्रतिपादन है और नैतिक समस्याओं पर कोई चिन्तन नहीं हुआ है, एकभ्रान्त धारणा ही होगी। अनेक नैतिक समस्याओं का सुन्दर हल भारतीय चिन्तन ने दिया है, जो उसकी मौलिक प्रतिभा को अभिव्यक्त करता है। 3. भारतीय नैतिक-चिन्तन प्रमुख रूप से अध्यात्मवादी है, जबकि पाश्चात्य नैतिक-चिन्तन में भौतिकवादी दृष्टिकोण का विकास अधिक देखा जाता है। भारतीय नैतिक-चिन्तन में परमश्रेय निर्वाण, मोक्ष या आध्यात्मिक पूर्णता की प्राप्ति है, जबकि पाश्चात्य नैतिक चिन्तन में परमश्रेय व्यक्ति एवं समाज का भौतिक कल्याण है। वैयक्तिक या सामाजिक हितों की उपलब्धि एवं सुरक्षा तथा व्यवस्थित और सामंजस्यपूर्ण सामाजिक जीवन को ही अधिकांश पाश्चात्य-विचारकों ने नैतिकता का साध्य माना है। यद्यपि हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि पश्चिम में भी ब्रैडले प्रभृति कुछ आध्यात्मिक विचारकों ने नैतिक साध्य के रूप में जिस आत्मपूर्णता एवं आत्मसाक्षात्कार के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है, वह भारतीय आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक दूर नहीं है। इसी प्रकार, भारतीय चिन्तकों ने भी जीवन के भौतिक पक्ष की पूरी तरह से अवहेलना नहीं की है। 4. भारतीय और पाश्चात्य नैतिक-चिन्तन में एक महत्वपूर्ण अन्तर यह भी है कि भारतीय आचार-परम्परा निर्वाणवादी होने के कारण व्यक्तिपरक रही, जबकि पाश्चात्यपरम्परा समाजपरक। व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास निर्वाणलक्षी भारतीय नैतिकता का प्रमुख ध्येय है, जबकि सामाजिक सन्तुलन, सामाजिक प्रगति और सामाजिक सामञ्जस्य पाश्चात्य नैतिक-चिन्तन का प्रमुख साध्य रहा है। यद्यपि थोड़ी गहराई से विचार करने पर हम पाते हैं कि जहाँ भारत में निर्वाण-लक्षी महायान बौद्ध-परम्परा समग्र साधना को समाजपरक बना देती है, वहीं पश्चिम में स्पिनोजा और नीत्से नैतिकता को व्यक्तिपरक बना देते हैं, अत: इस सम्बन्ध में कोई भी एकांगी दृष्टिकोण भ्रान्तिपूर्ण ही होगा। 9. पाश्चात्य विचारकों के भारतीय-आचारदर्शन पर आक्षेपऔर उनका प्रत्युत्तर __ पाश्चात्य-विचारकों ने भारतीय नैतिक-चिन्तन पर कुछ आक्षेप लगाए हैं। डॉ. राधाकृष्णन् ने अपनी पुस्तक प्राच्य धर्म और पाश्चात्य विचार' में श्वेट्जर के द्वारा लगाए गए कुछ आक्षेपों का उल्लेख किया है। यहाँ हम उन्हीं आक्षेपों के सन्दर्भ में जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों की दृष्टि से विचार करेंगे। क्योंकि ये आक्षेप न केवल हिन्दू-विचारणा पर लागू होते है, वरन् जैन और बौद्ध-परम्पराओं पर भी लागू होते हैं, इसलिए इन पर विचार अपेक्षित है। डॉ. श्वेट्जर ने भारतीय-परम्परा पर निम्न आक्षेप किए हैं1. हिन्दू-विचारणा में परमानन्द (मोक्ष) पर जो बल दिया जाता है, वह स्वाभाविक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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