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भारतीय आचारदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन
देश में कुछ ऐसे प्रबुद्ध व्यक्तित्वों का जन्म हो जाता है, जो उस देश के चिन्तन को नया मोड़ दे देते हैं।
भारत की अपनी भौगोलिक परिस्थिति, अपना जलवायु, अपनी पूर्ववर्ती परम्पराएँ और अपने महापुरुष हैं; अतः यह स्पष्ट है कि उसकी नैतिक चिन्तन की अपनी विशेषताएँ हैं। जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शन भारतभूमि में विकसित हुए हैं और इस रूप में उनकी कुछ सामान्य अभिस्वीकृतियाँ हैं, जो हमें उनके व्यवस्थित और तुलनात्मक अध्ययन के लिए प्रेरित करती हैं। भारतीय नैतिक चिन्तन की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
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1. जागतिक - उपादानों की नश्वरता - भारतीय चिन्तन में जो कुछ भी ऐन्द्रिकअनुभवों के विषय हैं, वे सभी परिवर्तनशील, विनाशशील और अनित्य माने गए हैं। जैन, बौद्ध और गीता की परम्पराएँ जागतिक - उपादानों की इस नश्वरता को स्वीकार करके चलती हैं। 55
2. आत्मा की अमरता - यद्यपि शरीर, इन्द्रियाँ और उनके विषय नश्वर माने गए हैं, लेकिन आत्मा या जीव को नित्य कहा गया है। जैनदर्शन और गीता- दोनों ही आत्मा को नित्य और शाश्वत मानते हैं। दोनों के अनुसार शरीर के नाश हो जाने पर भी आत्मा का
नहीं होता । जहाँ तक बौद्ध-विचारधारा का प्रश्न है, वह नित्य आत्मा की सत्ता को स्वीकार नहीं करती है, फिर भी वह यह मानती है कि शरीर के नष्ट हो जाने पर भी विज्ञानप्रवाह या चेतना प्रवाह बना रहता है।
3. कर्म - सिद्धान्त में विश्वास- कर्मसिद्धान्त भारतीय - आचारदर्शन की विशिष्ट मान्यता है । जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शन इस कर्मसिद्धान्त में अटूट श्रद्धा रखते हैं। सभी यह स्वीकार करते हैं कि कृत कर्मों का फलयोग आवश्यक है। ST
4. मरणोत्तर जीवन एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त में आस्था - जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शन मरणोत्तर जीवन एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्वीकार करके चलते हैं। 58 कर्मसिद्धान्त और आत्मा की अमरता, यह अनिवार्यत: पुनर्जन्म की मान्यता को स्थापित करते हैं।
5. स्वर्ग-नरक के अस्तित्व में विश्वास - पुनर्जन्म के सिद्धान्त की धारणा के साथ यह भी स्वीकार किया गया है कि व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार मरणोत्तर अवस्था में स्वर्ग या नरक को प्राप्त करता है। " शुभ कर्मों के परिणामस्वरूप स्वर्ग और अशुभ कर्मों के परिणामस्वरूप नरक की प्राप्ति होती है।
6. जीवन की दुःखमयता- जीवन की दुःखमयता भारतीय दर्शनों का एक प्रमुख
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