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भारतीय आचारदर्शन का स्वरूप
4. कर्त्तव्य - कर्त्तव्य का प्रत्यय यह बताता है कि किन्हीं विशेष परिस्थितियों में किसी विशेष कार्य का करना हमारा दायित्व है । कर्तव्य का उद्भव सामाजिक एवं बौद्धिक जीवन में होता है । कर्त्तव्य का भाव या तो अधिकारों की धारणा से, या बुद्धि से निर्गमित होता है ।
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5. चारित्र - चरित्र व्यक्ति की आदतों से निर्मित होता है और वह व्यक्ति की जीवन-दृष्टि को स्पष्ट करता है। चारित्र, जीवन जीने का एक ढंग - विशेष है । व्यक्ति की जो जीवन-दृष्टि होती है, वैसा ही उसके जीवन जीने का ढंग होता है और वही उसके चारित्र का परिचायक होता है । चारित्र कर्म करने की स्वेच्छार्जित स्थानीय प्रवृत्तियों का संगठित रूप है।
नीतिशास्त्र के उपर्युक्त प्रमुख प्रत्यय स्वतन्त्र रूप में नहीं रहकर एक व्यवस्था में रहते हैं । उनमें एक निकटतम पारस्परिक सम्बन्ध भी है। भारतीय परम्परा में निर्वाण परमश्रेय की, पुण्य और पाप शुभाशुभ की एवं वर्णाश्रमधर्म कर्त्तव्यभाव की अभिव्यक्ति करते हैं।
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भारतीय - आचारदर्शनों की सामान्य विशेषताएँ
धर्म-अधर्म, शुभ -अशुभ, कुशल- अकुशल, श्रेय-पेय और उचित - अनुचित के सम्बन्ध में विचार करने की प्रवृत्ति मानव में प्राचीनकाल से ही रही है। पश्चिम में पाइथागोरस, सुकरात, प्लेटो और अरस्तू आदि से लेकर रसल, मूर, पेटन आदि वर्त्तमान युग के विचारकों तक और पूर्व में वेद और उपनिषद् के काल के ऋषिगणों एवं कृष्ण, बुद्ध और महावीर की परम्परा से लेकर तिलक और गांधी के वर्त्तमान युग तक नैतिक चिन्तन का यह प्रवाह सतत रूप से प्रवाहित होता रहा है, फिर भी देश-कालगत परिस्थितियों के कारण नैतिक चिन्तन की यह धारा पूर्व और पश्चिम में कुछ भिन्न रूपों में प्रवाहित होती रही है।
प्रत्येक देश की अपनी भौगोलिक परिस्थिति होती है। जिन देशों में व्यक्ति को अपने जीवनयापन के साधनों की उपलब्धि सहज नहीं होती, वहाँ जीवन के उच्च आदर्शों का विकास भी नहीं हो पाता, लेकिन जहाँ जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति सहज एवं सुलभ होती है, वहाँ चिन्तन की दिशा भी बदल जाती है। इसी प्रकार, प्रत्येक देश की पूर्ववर्ती परम्पराएँ भी उस देश की चिन्तन की धारा को विशेष दिशा की ओर मोड़ देती हैं। अतः, प्रत्येक देश में जीवन के मूल्यों के सम्बन्ध में अपना विशेष दृष्टिकोण होता है। आधुनिक वैज्ञानिक चिन्तन ने हमें यह भी बताया है कि जलवायु भी विचारों को प्रभावित करती है। उसका प्रभाव व्यक्ति की वासनाओं और स्वभावों पर पड़ता है। उसके परिणामस्वरूप भी देश की चिन्तनधारा एक नई दिशा ले लेती है। मात्र यही नहीं, कभी
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