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भारतीय आचारदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन
6. नैतिक प्रत्यय और उनके अर्थ
पाश्चात्य-आचारदर्शन की विभिन्न परिभाषाओं में हमने यह देखा कि वे परिभाषाएँ नीतिशास्त्र के किसी प्रत्यय विशेष पर जोर देती है, लेकिन नीतिशास्त्र में किसी प्रत्यय विशेष को ही महत्व देना एकांगी दृष्टिकोण होगा। यद्यपि नीतिशास्त्र के विभिन्न प्रत्ययों में एक क्रम या व्यवस्था हो सकती है, तथापि किसी भी प्रत्यय को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। नीतिशास्त्र के प्रमुख प्रत्यय परम शुभ, शुभ, उचित, कर्त्तव्य, चारित्र आदि हैं। भारतीय आचारदर्शनों में यद्यपि उपर्युक्त सभी नैतिक-प्रत्यय उपस्थित हैं, तथापिभारतीयपरम्परा में उनकी परिभाषाएँ अनुपलब्ध हैं। इस सन्दर्भ में हमें पाश्चात्य दृष्टिकोण का ही सहारा लेना होगा, फिर भी हम उन्हें भारतीय सन्दर्भ में ही परखने का प्रयास करेंगे।
1. परमशुभ- भारतीय-परम्परा में जीवन का परमश्रेय दु:खों का आत्यन्तिक विनाश और अक्षयआनन्दकी उपलब्धि है। एक अन्य अपेक्षासे आत्मपूर्णता को भी जीवन का परमश्रेय माना गया है। तात्त्विक-दृष्टि से परमश्रेय हमारी सत्ता का सारतत्त्व है, उसे जैनपरम्परा में स्वभावदशा की उपलब्धि और गीता में परमात्मा की उपलब्धि कहा गया है। संक्षेप में, इसे निर्वाण कहा जाता है और विस्तारपूर्वक विचार करने पर यह हमारी सत्ता का सारतत्त्व, अक्षय आनन्द की अवस्था और दुःखों से आत्यन्तिक विमुक्ति सिद्ध होता है। भारतीय-परम्परा में परमश्रेय, निर्वाण, परमात्मदशा, स्वभावदशा आदि पर्यायवाची शब्द ही माने जाते हैं। परमश्रेय का विवेचन करना या उसे परिभाषित करना सम्भव नहीं है। जैन, बौद्ध और वैदिक-परम्पराओं में उसे अनिर्वचनीय, अर्थात् अविश्लेष्य एवं अपरिभाष्य ही बताया गया है। पाश्यात्य-परम्परा में मूर ने भी शुभ को अविश्लेष्य एवं अपरिभाष्य माना है।
2. शुभ- भारतीय दृष्टिकोण से शुभ और परमशुभ में अन्तर है। परमशुभ एक आध्यात्मिक आदर्श है, जबकि शुभ लौकिक आदर्श। भारतीय-परम्परा में इसे पुण्य भी कहा गया है। पुण्य या परोपकार एक ऐसा आदर्श है, जिसका लक्ष्य दूसरों का हित करना है। इसे हम सामाजिक जीवन का आदर्श भी कह सकते हैं।
3. औचित्य और अनौचित्य के प्रत्यय-औचित्य और अनौचित्य के प्रत्यय शुभ या परमशुभ के प्रत्यय पर निर्भर हैं। जो आचरण शुभ अथवा परमशुभ की दिशा में ले जाता है, वह उचित कहा जाता है। इसके विपरीत, जो आचरण शुभ अथवा परमशुभ से विमुख करताहै, वहअनुचित कहा जाता है। संक्षेप में,औचित्य और अनौचित्यकाआधार शुभ और परमशुभ के प्रत्यय ही हैं। यद्यपि कुछ लोगों ने उचित और अनुचित को सामाजिक अनुमोदन
और अननुमोदन से भी जोड़ने का प्रयास किया है। जिन कर्मों के पीछे सामाजिक अनुमोदन है, वे उचित हैं और जिन कर्मों के पीछे सामाजिक अनुमोदन नहीं है, वे अनुचित कहे जाते हैं।
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