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________________ मनोवृत्तियाँ ( कषाय एवं लेश्याएँ) उत्तराध्ययनसूत्र" में लेश्याओं के स्वरूप का निर्वचन विविध पक्षों के आधार पर विस्तृत रूप से हुआ है, लेकिन हम अपने विवेचन को लेश्याओं के भावात्मक पक्ष तक ही सीमित रखना उचित समझेंगे। मनोदशाओं मे संक्लेश की न्यूनाधिकता, अथवा मनोभावों शुभत्व से शुभ की ओर बढ़ने की स्थितियों के आधार पर ही उनके विभाग किए गए हैं। अप्रशस्त और प्रशस्त - इन द्विविध मनोभावों के उनकी तारतम्यता के आधार पर छह भेद वर्णित हैं। अप्रशस्त मनोभाव प्रशस्त - मनोभाव 1. कृष्ण - लेश्या - तीव्रतम अप्रशस्त - मनोभाव 4. तेजोलेश्या - प्रशस्त-मनोभाव 5. पद्मलेश्या - तीव्र प्रशस्त - मनोभाव 2. नील - लेश्या - तीव्र अप्रशस्त मनोभाव 3. कापोत- लेश्या - अप्रशस्त - मनोभाव 6. शुक्ललेश्या - तीव्रतम प्रशस्त मनोभाव लेश्याएँ एवं नैतिक- व्यक्तित्व का श्रेणी - विभाजन- लेश्याएँ मनोभावों का वर्गीकरण -‍ - मात्र नहीं हैं, वरन् ये चरित्र के आधार पर किए गए व्यक्तित्व के प्रकार भी हैं। मनोभाव अथवा संकल्प आन्तरिक तथ्य ही नहीं हैं, वरन् वे क्रियाओं के रूप में बाह्यअभिव्यक्ति भी चाहते हैं । वस्तुतः, संकल्प ही कर्म में रूपान्तरित होते हैं। ब्रेडले का यह कथन उचित है कि कर्म संकल्प का रूपान्तरण है। 50 मनोभूमि या संकल्प व्यक्ति के आचरण का प्रेरक - सूत्र है, लेकिन कर्म-क्षेत्र में संकल्प और आचरण दो अलग-अलग तत्त्व नहीं रहते। आचरण से संकल्पों की मनोभूमिका का निर्माण होता है और संकल्पों की मनोभूमिका पर ही आचरण स्थित होता है। मनोभूमि और आचरण अथवा चरित्र का घनिष्ठ सम्बन्ध है । इतना ही नहीं, मनोवृत्ति स्वयं में भी एक आचरण है। । मानसिककर्म भी कर्म ही है। अतः, जैन- विचारकों ने जब लेश्या - परिणाम की चर्चा की, तो वे मात्र मनोदशाओं की चर्चाओं तक ही सीमित नहीं रहे, वरन् उन्होंने उस मनोदशा से प्रत्युत्पन्न जीवन के कर्म-क्षेत्र से घटित होने वाले व्यवहारों की चर्चा भी की और इस प्रकार जैन लेश्या - सिद्धान्त व्यक्तित्व के नैतिक पक्ष के आधार पर व्यक्तित्व के नैतिक-प्रकारों के वर्गीकरण का सिद्धान्त बन गया। जैन-विचारकों ने इस सिद्धान्त - 539 आधार पर यह बताया कि नैतिक दृष्टि से व्यक्तित्व या तो नैतिक होगा या अनैतिक होगा और इस प्रकार दो वर्ग होंगे - 1. नैतिक और 2. अनैतिक । इन्हें धार्मिक और अधार्मिक, अथवा शुक्ल-पक्षी और कृष्ण-पक्षी भी कहा गया है। वस्तुतः, एक वर्ग वह है, जो नैतिकता अथवा शुभ की ओर उन्मुख है। दूसरा वर्ग वह है, जो अनैतिकता या अशुभ की ओर उन्मुख है। इस प्रकार, नैतिक गुणात्मक अन्तर के आधार पर व्यक्तित्व के ये दो प्रकार बनते हैं, लेकिन जैन-विचारक मात्र गुणात्मक-वर्गीकरण से Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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