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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
का वर्गीकरण किया जाता है। मनोवृत्तियों के नैतिक-आधारों पर व्यक्तित्व के वर्गीकरण की परम्परा बहुत पुरानी है। जैन, बौद्ध और गीता के आचार-दर्शनों में ऐसा वर्गीकरण या श्रेणी-विभाजन उपलब्ध है। जैन-दर्शन में इस वर्गीकरण का आधार लेश्या-सिद्धान्त है। बौद्ध-दर्शन में लेश्या का स्थान अभिजाति ने लिया है, जबकि गीता में इसे दैवी एवं आसुरीसम्पदा के रूप में वर्णित किया गया है। आगे हम नैतिक-व्यक्तित्व के सम्बन्ध में इसी लेश्या-सिद्धान्त की चर्चा करेंगे। नैतिक-व्यक्तित्व की चर्चा करते समय हमें कषायसिद्धान्त के स्थान पर लेश्या-सिद्धान्त की ओर आना होता है। कषाय-सिद्धान्त केवल अशुभ आवेगों की तीव्रता के आधार पर चर्चा करता है, जबकि लेश्या-सिद्धान्त में शुभ एवं अशुभ-दोनों प्रकार के मनोभावों की चर्चा आती है।
लेश्या-सिद्धान्त और नैतिक-व्यक्तित्व ___ जैन-विचारकों के अनुसार लेश्या की परिभाषा यह है कि जो आत्मा को कर्मों से लिप्त करती है, जिसके द्वारा आत्माकों से लिप्त होती है, या बन्धन में आती है, वह लेश्या है।" जैनागमों में लेश्या दो प्रकार की मानी गई है- 1. द्रव्य-लेश्या और 2. भाव-लेश्या।
1. द्रव्य-लेश्या-द्रव्य-लेश्या सूक्ष्म भौतिकी-तत्त्वों से निर्मित वह आंगिकसंरचना है, जो हमारे मनोभावों एवं तज्जनित कर्मों का सापेक्ष रूप में कारण अथवा कार्य बनती है। जिस प्रकार पित्तद्रव्य की विशेषतासे स्वभाव में क्रोधीपन आता है और क्रोध के कारण पित्त का निर्माण बहुल रूप में होता है, उसी प्रकार इन सूक्ष्म भौतिक-तत्त्वों से मनोभाव बनते हैं और मनोभाव के होने पर इन सूक्ष्म संरचनाओं का निर्वाण होता है। इनके स्वरूप के सम्बन्ध में पं. सुखलालजी एवं राजेन्द्रसूरिजी ने निम्न तीन मतों को उद्धृत किया है -
1. लेश्या-द्रव्य कर्म-वर्गणा से बने हुए हैं। यह मत उत्तराध्ययन की टीका में है।
2. लेश्या-द्रव्य बध्यमान कर्म-प्रवाहरूप हैं। यह मत भी उत्तराध्ययन की टीका में वादिवेताल शान्तिसूरि का है।
3. लेश्या योग-परिणाम है, अर्थात् शारीरिक, वाचिक और मानसिक-क्रियाओं का परिणाम है। यह मत आचार्य हरिभद्र का है।
भाव-लेश्या- भाव-लेश्या आत्मा का अध्यवसाय या अन्त:करणकी वृत्ति है। पं. सुखलालजी के शब्दों में भाव-लेश्या आत्मा का मनोभाव-विशेष है, जो संक्लेश और योग से अनुगत है। संक्लेश के तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम, मन्द, मन्दतर, मन्दतम आदि अनेक भेद होने से लेश्या (मनोभाव) वस्तुत: अनेक प्रकार की है, तथापि संक्षेप में छह भेद करके (जैन) शास्त्र में उसका स्वरूप वर्णन किया गया है।
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