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भारतीय आचारदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन
नहीं है कि उसका विवेचनात्मक पक्ष से कोई सम्बन्धनहीं है। विद्या या विज्ञान विवेचनात्मक होता है, लेकिन अनेक विज्ञान ऐसे भी हैं, जो अपने निर्णयों की क्रियान्विति के अभाव में अपूर्ण रहते हैं; जैसे, शिल्पविज्ञान या चिकित्साविज्ञान। आचारशास्त्र का सम्बन्ध जहाँ एक ओर कर्तव्य, श्रेय या परमार्थ के विवेचन से है, वहीं दूसरी ओर क्रियान्विति से भी है।
नीतिशास्त्र एक आदर्शात्मक विज्ञान है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उसमें कलात्मक पक्ष का अभाव है। यद्यपि मैकेंजीप्रभृति कुछ पाश्चात्य नीतिवेत्ताओं ने नीतिशास्त्र को कला मानने से इन्कार किया है। मैकेंजी अपने नीतिप्रवेशिका नामक ग्रन्थ में बताते हैं, आचरण की कला हो ही नहीं सकती।' वे अपने पक्ष के समर्थन में दो तर्क देते हैं (1) आचरण आदत है, न कि क्षमता, जबकि कला नैपुण्य-क्षमता है। सदाचारी व्यक्ति वह है, जो सदाचरण करता है, जबकि अच्छा कलाकार वह है, जो अच्छा चित्र बना सकता है। सदाचरण के अभाव में एक व्यक्ति सदाचारी नहीं रहता है, अथवा सदाचरण करने की क्षमता-मात्र से कोई सदाचारी नहीं हो जाता है। (2) कला का सम्बन्ध निर्मिति की सिद्धि से है, जबकि आचरण का सम्बन्ध आन्तरिक उद्देश्य से है। दूसरे शब्दों में, कला का सम्बन्ध साध्य की उपलब्धि से है, जबकि आचरण का सम्बन्ध साधन की शुद्धि या सद्भावना से है।
भारतीय-परम्परा की दृष्टि से मैकेंजी का यह दृष्टिकोण समुचित नहीं है। जैनपरम्परा और गीता के अनुसार, जिसका दृष्टिकोण अथवा जिसकी श्रद्धा सम्यक् है, वह सदाचरण की क्रिया के अभाव में भी सदाचारी माना गया है। जैन-परम्परा के अनुसार अविरतसम्यग्दृष्टि यद्यपि अशुभाचरण से विरत नहीं होता है, फिर भी आचारांगसूत्र में यह कहकर कि सम्यग्दृष्टि कोई पाप नहीं करता है,' क्षमता के आधार पर उसे नैतिक व्यक्ति मान लिया गया है। गीता में यह कहकर कि भगवान् के प्रति सम्यक् श्रद्धा से युक्त दुराचारी को भी सदाचारी ही मानना चाहिए,54 इसी बात को स्पष्ट किया गया है कि नैतिकआचरण की क्षमता से युक्त होने पर आचरण के अभाव में भी किसी को सदाचारी माना जा सकता है। दूसरे, यह मानना कि नीतिशास्त्र केवल साधन-शुद्धि और सद्-उद्देश्य पर बल देता है, समुचित नहीं है। भारतीय-परम्परा में नैतिक-जीवन का परमलक्ष्य मात्र साधन की शुद्धि या सद्-उद्देश्यता नहीं है, वरन् मोक्ष के साध्य की सिद्धि भी है। भारतीय-परम्परा में नीतिशास्त्र को योगशास्त्र भी कहा गया है, और योग वही है, जो ‘साध्य' से जोड़ता है। गीता में योग को कर्मकौशल्य' भी कहा गया है और इस रूप में नीतिशास्त्र प्रवीणता पर उसी प्रकार बल देता है, जिस प्रकार कला। भारतीय-परम्परा में नीतिशास्त्र आचरण की कलाओं में महत्वपूर्ण कला है। कहा गया है
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