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________________ मनोवृत्तियाँ ( कषाय एवं लेश्याएँ) करते हुए इनसे दूर होकर शीघ्र निर्वाण प्राप्त कर लेता है, क्योंकि इन चारों दोषों का त्याग कर देने वाला पाप नहीं करता है। सूत्रकृतांग में कहा गया है कि क्रोध, मान, माया और लोभइन चार महादोषों को छोड़ देने वाला महर्षि न तो पाप करता है, न तो करवाता है 33 । कषाय-जय से जीवन्मुक्ति को प्राप्त कर वह निष्काम जीवन जीता है। बौद्ध दर्शन और कषाय-जय- धम्मपद में कषाय शब्द का प्रयोग दो अर्थों में हुआ है। एक तो उसका जैन- परम्परा के समान दूषित चित्तवृति के अर्थ में प्रयोग हुआ है और दूसरे, संन्यस्त जीवन के प्रतीक गेरूए वस्त्रों के अर्थ में। तथागत कहते हैं- 'जो व्यक्ति (रागद्वेषादि) कषायों को छोड़े बिना काषाय - वस्त्रों (गेरुए कपड़ों) को, अर्थात् संन्यास धारण करता है, वह संयम के यथार्थ स्वरूप से पतित व्यक्ति काषाय- वस्त्रों (संन्यास - मार्ग) का अधिकारी नहीं है, लेकिन जिसने कषायों (दूषित चित्तवृत्तियों) को वमित कर दिया (तज दिया) है, वह संयम के यथार्थ स्वरूप से युक्त व्यक्ति काषाय - वस्त्रों (संन्यास-मार्ग ) का अधिकारी है। 34' बौद्ध-विचार में कषाय शब्द के अन्तर्गत कौन-कौन दूषित वृत्तियाँ आती हैं, इसका स्पष्ट उल्लेख हमें नहीं मिला । क्रोध, मान, माया और लोभ को बौद्धविचारणा में दूषित चित्त वृत्ति के रूप में ही माना गया है और नैतिक आदर्श की उपलब्धि के लिए उनके परित्याग का निर्देश है। बुद्ध कहते हैं कि क्रोध को छोड़ दो और अभिमान का त्याग कर दो, समस्त संयोजनों को तोड़ दो, जो पुरुष नाम तथा रूप में आसक्त नहीं होता, (लोभ नहीं करता), जो अकिंचन है, उस पर क्लेशों का आक्रमण नहीं होता। जो उठते हुए क्रोध को उसी तरह निग्रहित कर लेता है, जैसे सारथी घोड़े को; वही सच्चा सारथी है (नैतिक - जीवन का सच्चा साधक है), शेष सब तो मात्र लगाम पकड़ने वाले हैं। 35 भिक्षुओं! लोभ, द्वेष और मोह पापचित्त वाले मनुष्य को अपने भीतर ही उत्पन्न होकर नष्ट कर देते हैं, जैसे केले के पेड़ को उसी का फल (केला)36। मायावी मर कर नरक में उत्पन्न प्राप्त होता है। 7 सुत्तनिपात में कहा गया है कि जो मनुष्य, जाति, धन और - गोत्र का अभिमान करता है और अपने बन्धुओं का अपमान करता है, वह उसके पराभव है | जो क्रोध करता है, वैरी है तथा जो मायावी है, उसे वृषल (नीच) जानो।” इस प्रकार, बौद्ध दर्शन इन अशुभ- चित्त वृत्तियों का निषेध कर साधक को इनसे ऊपर उठने का संदेश देता है। - Jain Education International 535 गीता और कषाय-निरोध- यद्यपि गीता में कषायों का ऐसा चतुर्विध वर्गीकरण नहीं मिलता, तथापि कषायों के रूप में जिन अशुभ मनोवृत्तियों का चित्रण जैनागमों में है, उन सभी अशुभ मनोवृत्तियों का उल्लेख गीता में भी है। हिन्दू आचार-दर्शन में कषाय शब्द का अशुभ मनोवृत्तियों के अर्थ में प्रयोग विरल ही हुआ है। छान्दोग्य उपनिषद् में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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