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मनोवृत्तियाँ (कषाय एवं लेश्याएँ)
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कोप-क्रोध से उत्पन्न स्वभाव की चंचलता, 3. दोष- स्वयं पर या दूसरे पर दोष थोपना, 4. रोष-क्रोध का परिस्फुट रूप, 5. संज्वलन-जलन या ईर्ष्या की भावना, 6. अक्षमाअपराध क्षमा न करना, 7. कलह- अनुचित भाषण करना, 8. चण्डिक्य- उग्र रूप धारण करना, 9. मंडन- हाथापाई करने पर उतारू होना, 10. विवाद-आक्षेपात्मक - भाषण करना।
क्रोध के प्रकार-क्रोध के आवेग की तीव्रता एवं मन्दता के आधार पर चार भेद किए गए हैं। वे इस भांति हैं
1. अनन्तानुबंधी-क्रोध (तीव्रतमक्रोध)- पत्थर में पड़ी दरार के समान क्रोध, जो किसी के प्रति एक बार उत्पन्न होने पर जीवन-पर्यन्त बना रहे, कभी समाप्त न हो।
2. अप्रत्याख्यानी-क्रोध (तीव्रतर क्रोध)- सूखते हुए जलाशय की भूमि में पड़ी दरार जैसे आगामी वर्षा होते ही मिट जाती है, वैसे ही अप्रत्याख्यानी-क्रोध एक वर्ष से अधिक स्थाई नहीं रहता और किसी के समझाने से शान्त हो जाता है।
3. प्रत्याख्यानी-क्रोध (तीव्र क्रोध)- बालू की रेखा जैसे हवा के झोकों से जल्दी ही मिट जाती है, वैसे ही प्रत्याख्यानी-क्रोध चार मास से अधिक स्थाई नहीं होता।
4.संज्वलन-क्रोध (अल्पक्रोध)- शीघ्र ही मिट जाने वाली पानी में खींची गई रेखा के समान इस क्रोध में स्थायित्व नहीं होता है।
बौद्ध-दर्शन में क्रोधके तीन प्रकार- बौद्ध-दर्शन में भी क्रोध को लेकर व्यक्तियों के तीन प्रकार माने गए हैं- 1. वे व्यक्ति, जिनका क्रोध पत्थर पर खींची रेखा के समान चिरस्थायी होता है, 2. वे व्यक्ति, जिनका क्रोध पृथ्वी पर खींची रेखा के समान अल्पस्थाई होता है, 3. वे, जिनका क्रोध पानी पर खींची रेखा के समान अस्थाई होता है। दोनों परम्पराओं में प्रस्तुत दृष्टान्त- साम्य विशेष महत्वपूर्ण है।' मान (अहंकार)
अहंकार करना मान है। अहंकार कुल, बल, ऐश्वर्य, बुद्धि, जाति, ज्ञान आदि किसी भी विशेषता का हो सकता है। मनुष्य में स्वाभिमान की मूल प्रवृत्ति है ही, परन्तु जब स्वाभिमान की वृत्ति दम्भ या प्रदर्शन का रूप ले लेती है, तब मनुष्य अपने गुणों एवं योग्यताओं का बढ़े-चढ़े रूप में प्रदर्शन करता है और इस प्रकार उसके अन्त:करण में मानवृत्ति का प्रादुर्भाव हो जाता है। अभिमानी मनुष्य अपनीअहंवृत्ति का पोष करता रहता है। उसे अपने से बढ़कर या अपनी बराबरी का गुणी व्यक्ति कोई दिखता ही नहीं।
जैन-परम्परा में प्रकारान्तर से मान के आठ भेद मान्य हैं- 1. जाति, 2. कुल, 3. बल (शक्ति), 4. ऐश्वर्य, 5. बुद्धि (सामान्य बुद्धि), 6. ज्ञान (सूत्रों का ज्ञान), 7. सौन्दर्य
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