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भारतीय आचार- दर्शन: एक तुलनात्मक अध्ययन
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प्रेरित । राग- प्र - प्रेरित होने पर वे राग-रूप हैं और द्वेष - प्रेरित होने पर द्वेषरूप होती हैं।' चारों कषायें वासना के राग-द्वेषात्मक पक्षों की आवेगात्मक अभिव्यक्तियाँ हैं। वासना का तत्त्व अपनी तीव्रता की अविधेयात्मक अवस्था में राग और निषेधात्मक अवस्था में द्वेष हो और द्वेष के भाव बाह्य आवेगात्मक अभिव्यक्ति में कषाय कहे जाते हैं। कषाय के भेद - आवेगों की अवस्थाएँ भी तीव्रता (Intenstiy) की दृष्टि से समान नहीं होती हैं, अत: तीव्र आवेगों को कषाय और मंद आवेग या तीव्र आवेगों के प्रेरकों को नो- कषाय (उप- कषाय) कहा गया है। कषायें चार हैं- 1. क्रोध, 2. मान, 3. माया और 4. लोभ । आवेगात्मक अभिव्यक्तियों की तीव्रता के आधार पर इनमें से प्रत्येक को चारचार भागों में बाँटा गया है - 1. तीव्रतम, 2 तीव्रतर 3. तीव्र और 4. अल्प । नैतिक दृष्टि से तीव्रतम क्रोध आदि व्यक्ति के सम्यक् दृष्टिकोण में विकार ला देते हैं। तीव्रतर क्रोध आदि आत्म-नियन्त्रण की शक्ति को छिन्न-भिन्न कर डालते हैं। तीव्र क्रोध आदि आत्मनियन्त्रण की शक्ति के उच्चतम विकास में बाधक होते हैं। अल्प क्रोध आदि व्यक्ति को पूर्ण वीतराग नहीं होने देते । चारों कषायों के तीव्रता के आधार पर चार-चार भेद हैं, अतः कषायों की संख्या 16 हो जाती है। निम्न नौ उप-आवेग, उप-कषाय या कषाय- प्रेरक माने गए हैं- 1. हास्य, 2. रति, 3. अरति, 4. शोक, 5. भय, 6, घृणा, 7. स्त्रीवेद ( पुरुष - सम्पर्क की वासना), 8. पुरुषवेद (स्त्री- सम्पर्क की वासना), 9. नपुंसकवेद (दोनों सम्पर्क की वासना । इस प्रकार कुल 25 कषायें हैं' ।
क्रोध
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यह एक मानसिक, किन्तु उत्तेजक आवेग है। उत्तेजित होते ही व्यक्ति भावाविष्ट हो जाता है। उसकी विचार-क्षमता और तर्क-शक्ति लगभग शिथिल हो जाती है । भावात्मक स्थिति में बढ़े हुए आवेश की वृत्ति युयुत्सा को जन्म देती है। युयुत्सा से अमर्ष और अमर्ष से आक्रमण का भाव उत्पन्न होता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार क्रोध और भय में यही मुख्य अन्तर है कि क्रोध के आवेश में आक्रमण का और भय के आवेश में आत्म-रक्षा का प्रयत्न होता है।
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जैन- विचार में सामान्यतया क्रोध के दो रूप मान्य हैं- 1. द्रव्य-क्रोध, 2. भावक्रोध' । द्रव्य-क्रोध को आधुनिक मनोवैज्ञानिक दृष्टि से क्रोध का आंगिक-पक्ष कहा जा सकता है, जिसके कारण क्रोध में होने वाले शारीरिक परिवर्तन होते हैं। भावक्रोध क्रोध की मानसिक अवस्था है । क्रोध का अनुभूत्यात्मक-पक्ष भाव- क्रोध है, जबकि क्रोध का अभिव्यक्त्यात्मक या शरीरात्मक पक्ष द्रव्य-क्रोध है। क्रोध के विभिन्न रूप हैं। भगवतीसूत्र में इसके दस समानार्थक नाम वर्णित हैं- 1. क्रोध- आवेग की उत्तेजनात्मक अवस्था, 2.
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