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________________ 498 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन अकाल में मृत्यु का ग्रास बन जाता है। रसों में आसक्त जीवको कुछ भी सुख नहीं होता, वहरसभोग के समय दुःख और क्लेश ही पाता है। इसी प्रकार, अमनोज्ञ रसों में द्वेष करने वाला जीव भी दुःख-परम्परा बढ़ाता है और कलुषित मन से कर्मों का उपार्जन करके दु:खद फल भोगता है। स्पर्श को शरीर ग्रहण करता है और स्पर्श स्पर्शनेन्द्रिय का ग्राह्य-विषय है। सुखद स्पर्श राग का तथा दुःखद स्पर्श द्वेष का कारण है। जो जीव सुखद स्पर्शों में अति आसक्त होता है, वह जंगल के तालाब के ठंडे पानी में पड़े हुए और मकर द्वारा ग्रसे हुए भैंसे की तरह अकाल में ही मृत्यु को प्राप्त होता है। स्पर्श की आशा में पड़ा हआभारीकर्मी जीव चराचर जीवों की अनेक प्रकार से हिंसा करता है, उन्हें दुःख देता है।" सुखद स्पर्शों से मूछित प्राणी उन वस्तुओं की प्राप्ति, रक्षण, व्यय एवं वियोग की चिन्ता में ही घुला करता है। भोग के समय भी वह तृप्त नहीं होता, फिर उसके लिए सुख कहाँ ?2 स्पर्श में आसक्त जीवों को किंचित् भी सुख नहीं होता। जिस वस्तु की प्राप्ति क्लेश एवं दुःख से हुई, उसके भोग के समय भी कष्ट ही मिलता है। आचार्य हेमचन्द्र योगशास्त्र में कहते हैं कि स्पर्शनेन्द्रिय के वशीभूत होकर हाथी, रसनेन्द्रिय के वशीभूत मछली, घ्राणेन्द्रिय के वशीभूत होकर भ्रमर, चक्षु-इन्द्रिय के वशीभूत होकर पतंगा और श्रोत्रेन्द्रिय के वशीभूत होकर हरिण मृत्यु का ग्रास बनता है। जब एक इन्द्रिय के विषयों में आसक्ति मृत्यु का कारण बनती है, तो फिर पाँचों इन्द्रियों के विषयों के सेवन में आसक्त मनुष्य की क्या गति होगी? बौद्ध-दर्शन में इन्द्रिय-निरोध- इतिवृत्तक में बुद्ध कहते हैं कि भिक्षुओं, दो बातों से युक्त भिक्षु उसी जन्म में दुःख, पीड़ा, परेशानी और सन्तापके साथ विहरता है तथा शरीर छूटने पर उसकी दुर्गति जाननी चाहिए। कौन-सी दो ?- इन्द्रियों में संयम न करना और भोजन की मात्रा न जानना। जिसके चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, रसना, काय और मन, इतने द्वार गुप्त नहीं हैं, भोजन करने में मात्रा नहीं जानने वाला और इन्द्रियों में असंयमी भिक्षुशारीरिक-दुःख तथा चैतसिकदुःखको प्राप्त होता है, उसी प्रकार भिक्षु जलती हुई काया और जलते हुए चित्त से दुःखपूर्वक विहरता है। ___ भिक्षुओं, दो बातों से युक्त भिक्षु इसी जन्म में सुख, पीड़ा-रहित, परेशानी-रहित और सन्तापरहित विहरता है तथा शरीर छूटने पर उसकी सुगति जानना चाहिए, किन दो?इन्द्रियों में संयम करना और भोजन करने में मात्रा जानना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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