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________________ भारतीय आचारदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन कर्त्तव्य एवं अकर्त्तव्य के मध्य द्विविशा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, तब नैतिकता का सैद्धान्तिक अध्ययन ही हमारा मार्गदर्शक बन सकता है। इस सबके अतिरिक्त विभिन्न आचारदर्शनों की देश-कालगत विशेषताएँ एवं विभिन्नताएँ स्वयं हमें नैतिक सिद्धान्तों के अध्ययन के लिए आकर्षित करती हैं। 4. आचारदर्शन की परिभाषा आचारदर्शन या नीतिशास्त्र को अनेक प्रकार से परिभाषित किया गया है। पाश्चात्य-परम्परा में आचारदर्शन की परिभाषाएँ अनेक दृष्टिकोणों के आधार पर की गई हैं। किसी ने उसे रीतिरिवाजों और नियमों का विज्ञान माना, तो किसी ने उसे चरित्र का विज्ञान बताया। दूसरे कुछ विचारकों ने उसे कर्त्तव्यशास्त्र और औचित्यअनौचित्य के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया, तो अन्य कुछ विचारकों ने उसे परमशुभ (श्रेय) या मानवजीवन में सन्निहित आदर्श का विज्ञान बताया। संक्षेप में, नीतिशास्त्र की पाश्चात्य परिभाषाओं के इन विभिन्न दृष्टिकोणों को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है34 1. नीतिशास्त्र रीतिरिवाजों अथवा सामाजिक नियमों का विज्ञान है। 2. नीतिशास्त्र आचरण या चरित्र का विज्ञान है। 3. नीतिशास्त्र उचित एवं अनुचित का विज्ञान है। 4. नीतिशास्त्र कर्तव्य का विज्ञान है। 5. नीतिशास्त्र मानवजीवन में सन्निहित आदर्श या परमश्रेय का विज्ञान है। 6. नीतिशास्त्र मूल्यांकन का विज्ञान है। 7. नीतिशास्त्र नैतिक प्रत्ययों के विश्लेषण का विज्ञान है। भारतीय-परम्परा में धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्र- दोनों अलग-अलगशास्त्र माने गए हैं, फिर भी हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि भारतीय-परम्परा में नीतिशास्त्र शब्द का प्रयोग भले ही हो, लेकिन उसका अर्थ पाश्चात्य-परम्परा से भिन्न है। भारत में नीतिशास्त्र का प्रयोग राजनीति के अर्थ में हुआ है, फिर भी उसमें सामाजिक जीवन-व्यवस्था के नियमों का विचार अवश्य मिलता है। पाश्चात्य-परम्परा में नीतिशास्त्र को 'एथिक्स' कहा जाता है। एथिक्स शब्द इथोस (ethos) से बना है, जिसका अर्थ रीतिरिवाज है। इस सन्दर्भ में नीतिशास्त्र सामाजिक नियमों या आदेशों से सम्बन्धित माना जाता है। पाश्चात्य-परम्परा में जिसे नीतिशास्त्र कहा जाता है, उसे भारतीय-परम्परा में धर्मशास्त्र कहा गया है। अत: भारतीय सन्दर्भ में नीतिशास्त्र की परिभाषा को समझने के लिए हमें धर्म की परिभाषाओं की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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