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भारतीय आचारदर्शन का स्वरूप
लिए आवश्यक माना गया है; किन्तु दूसरी ओर, इस तथ्य को भी स्वीकार किया गया है कि सैद्धान्तिक अध्ययन मात्र से ही जीवन की व्यावहारिक गुत्थी पूरी तरह सुलझती नहीं । आचार्य भद्रबाहु का कथन है कि मात्र ज्ञान से कार्य की निष्पत्ति नहीं हो जाती है। 28 जैसे तैरना जानने वाला व्यक्ति भी तैरने की क्रिया न करने पर डूब जाता है, उसी प्रकार जो साधक आचरणशील नहीं है, वह बहुत-से शास्त्र पढ़ लेने पर भी संसारसमुद्र में डूब जाता है | 29 आचार्य सैद्धान्तिक अध्ययन की तुलना दीपक से और व्यावहारिक विवेक की तुलना आँख से करते हुए कहते हैं, 'शास्त्रों का बहुत-सा अध्ययन भी किस काम का ? क्या करोड़ों दीपक जला देने से भी अन्धे को कोई प्रकाश मिल सकता है ? शास्त्र का थोड़ा-सा अध्ययन भी आचरणशील साधक के लिए उपयोगी होता है; जैसे, जिसकी आँख खुली है, उसके लिए एक दीपक का प्रकाश भी पर्याप्त है। 30 इस प्रकार, जैन- दृष्टि के अनुसार सैद्धान्तिक अध्ययन हमारे व्यावहारिक जीवन के लिए मात्र दिशानिर्देशक है। नैतिक विवेचनाएँ प्रत्यक्ष रूप से व्यावहारिक नहीं हैं, लेकिन वे जीवन के आदर्श को स्पष्ट कर आचरण का मार्ग प्रशस्त करती हैं। हमारे व्यवहार पर उनका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है । जिस प्रकार आँख के लिए प्रकाश और प्रकाश के लिए आँख आवश्यक है, उसी प्रकार सिद्धान्त के लिए व्यवहार और व्यवहार के लिए सिद्धान्त आवश्यक है। दोनों के पारस्परिक सहयोग से ही जीवन के आदर्श की दिशा में बढ़ा जा सकता है।
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पाश्चात्य-परम्परा में रेशडाल और मूर भी इसी दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं। रेशडाल का कथन है कि नीतिशास्त्र के व्यावहारिक मूल्य पर अविश्वास करना उन लोगों लिए भी कठिन है, जो इसके अव्यावहारिक स्वरूप को प्रकट करने में रुचि रखते हैं। 31 मूर का कहना है कि कर्त्तव्यमीमांसा समग्र नैतिक गवेषणाओं का लक्ष्य है। 2
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नैतिक- आचरण के लिए जहाँ यह आवश्यक है कि व्यक्ति यह जाने कि क्या शुभ है और क्या अशुभ; वहीं यह भी अपेक्षित है कि वह क्यों शुभ है और क्यों अशुभ, इसका भी उसे समुचित ज्ञान हो । यह बात नैतिकता के सैद्धान्तिक अध्ययन से ही सम्भव है, साथ ही नैतिक- आचरण का मार्ग भी इतना निरापद नहीं है। कभी-कभी व्यक्ति ऐसी द्विविधा की स्थिति में फँस जाता है कि सामान्यतः उचित और अनुचित का निर्णय करना कठिन हो जाता है। गीता में कहा गया है कि कर्म की शुभाशुभता का निर्णय करना अत्यन्त गहन विषय है । ” व्यक्ति के सम्बन्ध में शुभाशुभता का निर्णय लेना होता है, किन्तु ऐसा निर्णय नैतिकता सैद्धान्तिक अध्ययन के आधार पर ही अधिक अच्छे ढंग से लिया जा सकता है। जब
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