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नैतिक-जीवन का साध्य (मोक्ष)
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उपलब्धि नहीं, आन्तरिक-उपलब्धि है। दूसरे शब्दों में, वह निज गुणों का पूर्ण प्रकटन है। यहाँ हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि आत्मा के निज-गुण या स्व-लक्षण तो सदैव ही उसमें उपस्थित हैं। साधक को केवल उन्हें प्रकट करना है। हमारी मूलभूत क्षमताएँ साधकअवस्थाऔर सिद्ध-अवस्था में वही हैं। साधक और सिद्ध-अवस्था में अन्तर क्षमताओं का नहीं, वरन् क्षमताओं को योग्यताओं में बदल देने का है। जैसे बीज वृक्ष के रूप में प्रकट होता है, वैसे ही आत्मा के निजगुण पूर्णरूप में प्रकट हो जाते हैं। साधक आत्मा के ज्ञान, भाव (अनुभूति), और संकल्प के तत्त्व ही मोक्ष की अवस्था में अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसौख्य और अनन्तशक्ति के रूप में साध्य हैं। उपाध्याय अमरमुनिजी कहते हैं कि जैन-साधना स्व में स्व को उपलब्ध करना है, निज में जिनत्व की शोध करना है, अन्तस् में पूर्णरूपेण रममाण होना है, आत्मा के बाहर एक कण में भी साधना की उन्मुखता नहीं है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि जैन-विचारणा तात्त्विक-दृष्टि से साध्य और साधक में अभेदही मानती है। द्रव्यार्थिकदृष्टि से साध्य और साधक-दोनों एक ही हैं, यद्यपि पर्यायार्थिक-दृष्टि याव्यवहारनय से उनमें भेद है।आत्माकी स्वभाव-दशासाध्य है और आत्माकी विभावपर्याय ही साधक है। विभाव से स्वभाव की ओर गति ही साधना है। गीताका दृष्टिकोण
____ गीता में भी साध्य और साधक में अभेद माना गया है। गीता के अनुसार साधक जीवात्मा और साध्य परमात्मा दोनों में अभेद ही सिद्ध होता है, यद्यपि गीता के कुछ टीकाकार भिन्न मत भी रखते हैं। गीता के अनुसार नैतिक-आदर्श या परम साध्य परमात्मा की उपलब्धि ही है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं ही अव्यय-मोक्ष का, शाश्वत-धर्म का और अनन्त सुख का मूल स्थान हूँ।" दूसरी ओर, वे यह भी कहते हैं कि यह जीवात्मा, जो कि साधक है, मेरा ही सनातन अंश है। इस प्रकार, गीता के अनुसार अंश के रूप में जीवात्मा साधक है और अंशों के रूप में परमात्मा साध्य है, क्योंकि अंश और अंशी में तात्त्विक-दृष्टि से कोई भेद नहीं होता, इसलिए साधक जीवात्मा और साध्य परमात्मा में भी कोई भेद नहीं है। उनमें भेद मानना केवल व्यावहारिक-बात है। साधना-पथ और साध्य ।
जिस प्रकार साधक और साध्य में अभेद माना गया है, उसी प्रकार साधना-मार्ग और साध्य में भी अभेद है। जीवात्मा अपने ज्ञान, अनुभूति और संकल्प के रूप में साधक कहा जाता है। उसके यही ज्ञान, अनुभूति और संकल्प सम्यक् दिशा में नियोजित होने पर
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