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________________ भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन उचित और अनुचित का एक मानदण्ड रहता है। फिर चाहे उसका यह मानदण्ड तर्कविरुद्ध और अस्थिर ही क्यों न हो, वह अपने इसी मानदण्ड के आधार पर औचित्य और अनौचित्य का निर्णय देता है। यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी मानदण्ड का उपयोग करता है, फिर भी विरले ही ऐसे हैं, जो सोचते हैं कि नैतिकता के मानदण्डों या प्रतिमानों की विभिन्न अवधारणाएँ क्या हैं और वास्तविक नैतिक-प्रतिमान कौन-सा है ? नैतिक मानदण्ड का बोध और उसकी समीक्षा आचारदर्शन के अध्ययन के द्वारा ही सम्भव है। उत्तराध्ययनसूत्र में गणधर गौतम कहते हैं कि प्रज्ञा के द्वारा धर्म (नैतिकता) की समीक्षा करो और तर्क के द्वारा तत्त्व का विश्लेषण करो तथा वैज्ञानिक समीक्षा के आधार परधर्म के साधनों, अर्थात् आचार के प्रारूपों का निर्णय करो। आचारदर्शन का अध्ययन इसलिए आवश्यक है कि हमारे नैतिक-निर्णय सत्य बन सकें। प्रश्न चाहे उचित-अनुचित के विवेकका हो, चाहेआदर्श के निर्धारण का, अथवा नैतिक-निर्णय की समस्या का; आचारदर्शन का अध्ययन अनिवार्य है। जैन-दार्शनिकों के अनुसार समूचा साधना-मार्ग ज्ञान की प्राथमिकता पर अवस्थित है। प्रथम ज्ञान और तदनुसार आचरण- यही जैन-आचारदर्शन का स्वर्णिम सूत्र है। अज्ञानी आत्मा क्या साधना करेगा? वह शुभ और अशुभ, श्रेय और प्रेय, अथवा कल्याण और पाप के मार्ग को कैसे जानेगा?17 इसलिए जैन आचार्यों का स्पष्ट निर्देश है कि पहले श्रुतके अध्ययन के द्वारा शुभ और अशुभ के स्वरूप को समझो और उन्हें ठीक-ठीक जानकर श्रेय का आचरण करो। आचार्य कुन्दकुन्द का कहना है कि जो श्रेय और अश्रेय के सम्बन्ध में विज्ञ है, वही दुराचरण से निवृत्त होकर सदाचारी बनता है और उसी सदाचार की साधना के द्वारा आत्मविकास करता हुआ परमसाध्य निर्वाण को प्राप्त कर लेता है। गीता का भी कहना है किशुभ (कर्म), अशुभ (विकर्म) और शुद्ध कर्म (अकर्म) के स्वरूप को जानना चाहिए20 तथा शास्त्र के द्वारा विहित कर्म को जानकर ही विद्वान् पुरुष को आचरण करना चाहिए,21 क्योंकि जो पुरुष शास्त्र-विधि को छोड़कर इच्छानुसार आचरण करता है, वह न तो सुख प्राप्त करता है और न ही परमगति को प्राप्त होता है।22 4. विभिन्न नैतिक मान्यताओं की समीक्षा के लिए आचारदर्शन के अध्ययन की आवश्यकता- मानव में नैतिक विवेक की अपरिहार्य उपस्थिति ही उसके ज्ञान की अपूर्णता और परमार्थ के स्वरूप की जटिलता के कारण, अनेक नैतिक सिद्धान्तों की स्थापना का आधार बनी है। व्यक्ति की मूलभूत समस्या यह है कि वह किस आधार पर यह निर्णय करे कि क्या शुभ है और क्या अशुभ है। उसके नैतिक-निर्णयों का आधार क्या हो ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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