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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
और इसी जगत् में प्राप्त करना है। लोकोत्तर-मुक्ति इसका अनिवार्य परिणाम है, जो कि शरीर के छूट जाने पर प्राप्त हो जाती है। जैन, बौद्ध और गीता के आचार-दर्शन मुक्ति के दो रूपों को स्वीकार करते हैं, जिन्हें हम जीवन-मुक्ति और विदेह-मुक्ति कह सकते हैं।
जैन-दर्शन में मुक्ति के दो रूप- जैन-परम्परा में मुक्ति के इन दो रूपों को भाव-मोक्ष और द्रव्य-मोक्ष कहा जा सकता है। जैन-परम्परा में भावमोक्ष की अवस्था के प्रतीक अरिहन्त और द्रव्यमोक्ष की अवस्था के प्रतीक सिद्ध माने गए हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में मोक्ष और निर्वाण शब्दों का दो भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हुआ है। उनमें मोक्ष को कारण और निर्वाण को उसका कार्य बताया गया है (उत्तरा. 28/30)। इस सन्दर्भ में मोक्ष का अर्थ भाव-मोक्ष या रागद्वेष से मुक्ति है और द्रव्यमोक्ष का अर्थ निर्वाण या मरणोत्तर-मुक्ति की प्राप्ति है।
बौद्ध-परम्परा में दो प्रकार का निर्वाण- बौद्ध-परम्परा में भी दो प्रकार के निर्वाण माने गए हैं- 1. सोपादिशेष-निर्वाण धातु और 2. अनुपादिशेष-निर्वाण धातु। इतिवृत्तक में कहा गया है कि अनासक्त और चक्षुमान् भगवान् बुद्ध ने निर्वाण धातु को इन दो प्रकार का बताया है। एक धातु का नाम सोपादिशेष है, जो इस शरीर में बार-बार लाने वाली तृष्णा के क्षय के बाद प्राप्त होती है और दूसरी अनुपादिशेष है, जो शरीर छूटने के बाद प्राप्त होती है (इतिवुत्तक 2/7)।
__ वैदिक-परम्परा में दो प्रकार की मुक्ति- गीता और वेदान्त की परम्परा में भी जैन और बौद्ध-परम्पराओं के समान दो प्रकार की मुक्ति मानी गई है- 1. जीवन-मुक्ति और 2. विदेह-मुक्ति। जीवन-मुक्ति रागद्वेष और आसक्ति के पूर्णरूपेण समाप्त हो जाने पर प्राप्त होती है और ऐसाजीवन्मुक्त साधक जब अपना शरीर छोड़ देता है, तो वह विदेहमुक्ति कही जाती है। जैन-दर्शन बौद्ध-दर्शन
वैदिक भावमोक्ष सोपादिशेष-निर्वाण धातु जीवन-मुक्ति द्रव्यमोक्ष । अनुपादिशेष-निर्वाण धातु विदेह-मुक्ति
इस तालिका के आधार पर जैन, बौद्ध और वैदिक-तीनों आचार-दर्शन जीवनमुक्ति और विदेह-मुक्ति के प्रत्यय को स्वीकार करते हैं। इतना ही नहीं, तीनों आचारदर्शन जीवन-मुक्त के स्वरूप के सम्बन्ध में समान दृष्टिकोण रखते हैं, साथ ही यह भी स्वीकार करते हैं कि जब तक जीवन-मुक्ति प्राप्त नहीं होती, तब तक निर्वाण, मोक्ष या
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