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________________ 442 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन रहे हैं- एक अर्थ में वह चेतना के ज्ञान, भाव और संकल्प के मध्य सांग संतुलन है, तो दूसरी ओर यह वैयक्तिक सीमाओं और सीमितताओं से ऊपर उठना है, ताकि समाज के अन्य घटकों और हमारे बीच का द्वैत समाप्त हो सके और व्यक्ति एक महापुरुष के रूप में समाज कामार्गदर्शन कर सके। ब्रेडले का कथन है कि मैं अपने को नैतिक रूप से अभिव्यक्त तभी करता हूँ, जब मेरी आत्मा मेरी निजी आत्मा नहीं रह जाती, जब मेरा संकल्प अन्य लोगों के संकल्प से भिन्न नहीं रह जाता और जब मैं दूसरों के संसार में केवल अपने को पाता हूँ। आत्मानुभूति का अर्थ है-असीम व अनन्त हो जाना, अपने व पराए के अन्तर को मिटा देना।' यह है पराभौतिक-स्तर पर आत्मानुभूति का अर्थ। मनोवैज्ञानिक-स्तर पर आत्मानुभूति का अर्थ होगा-हमारी सम्पूर्ण बौद्धिक, नैतिक एवं कलात्मक-योग्यताओं तथा क्षमताओं की अभिव्यक्ति। यदि हम अपनी कामनाओं एवं उद्देश्यों को एक साथ रखकर देखें, तो सभी विशेष उद्देश्य कुछ सामान्य और व्यापक उद्देश्यों के अन्तर्गत आजाते हैं, जो परस्पर मिलकर एक समन्वयात्मक-समुच्चय बन जाते हैं। इसी समन्वयात्मकसमुच्चय में हमारी आत्मा पूर्ण रूप से अभिव्यक्त होती है। भारतीय-परम्परा में पूर्णता का अर्थ थोड़ा भिन्न है। पाश्चात्य-परम्परा में आत्मा (Self) का अर्थ व्यक्तित्व है और जब हम पाश्चात्य-परम्परा में आत्मपूर्णता की बात कहते हैं, तो उसका तात्पर्य है, व्यक्तित्व की पूर्णता। व्यक्तित्व का तात्पर्य है- शरीर और चेतना, लेकिन अधिकांशभारतीय-दर्शन आत्माको तात्त्विक 'सत्' के रूप में लेते हैं, अत: भारतीय-चिन्तन के अनुसार आत्म-पूर्णता का अर्थ अपनी तात्त्विक-सत्ता की अथवा परमार्थ की उपलब्धि है।यों भारतीय-परम्परा में आत्मपूर्णता का अर्थ आत्मा की ज्ञानात्मक, भावात्मक और संकल्पात्मक-शक्तियों की पूर्णताभी मान्य है। भारतीय-चिन्तन के अनुसार मनुष्य के ज्ञान, भाव और संकल्प का अनन्त ज्ञान, अनन्त सौख्य (आनन्द) और अनन्त शक्ति के रूप में अभिव्यक्त हो जाना ही आत्म-पूर्णता है। यही वह अवस्था है, जिसमें आत्मा परमात्मा बन जाता है। आत्मा की शक्तियों का अनावरण एवं पूर्ण अभिव्यक्ति, यही परमात्मतत्त्व की प्राप्ति है और यही आत्मपूर्णता है। (स) आत्म-साक्षात्कार आत्मपूर्णता पर' यापूर्व-अनुपस्थित वस्तु की उपलब्धि नहीं, वरन् आत्मोपलब्धि ही है। यह एक ऐसी उपलब्धि है, जिसमें पाना कुछ भी नहीं, वरन् सब कुछ खो देना है। यह पूर्ण रिक्तता एवं शून्यता है। सब कुछ खो देने पर सब कुछ पा लिया जाता है। पूर्ण रिक्तता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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