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________________ 436 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन जीवन-प्रणाली का निर्माण किया जाए, ताकि एक ऐसे विकसित मानव-समाज की संरचना हो सके, जो इन संघर्षों से मुक्त हो। वस्तुतः, नैतिक-जीवन का लक्ष्य एक ऐसे समत्व की संस्थापना करना है, जिससे आन्तरिक-मनोवृत्तियों का संघर्ष, आन्तरिक-इच्छाओं और उनकी पूर्ति के बाह्य-प्रयासों का संघर्ष और बाह्य-समाजगत एवं राष्ट्रगत संघर्ष- जो स्वयं व्यक्ति के द्वारा प्रसूत नहीं होते हुए भी उसे प्रभावित करते हैं, समाप्त हो जाएं। वैज्ञानिकों ने जीवन की प्रवृत्ति को संतुलन बनाने वाली प्रवृत्ति कहा है। जीवन का आदर्श संतुलन बनाए रखना है। जब भी किसी कारण से यह संतुलन टूटता है, प्राणी उस संतुलन को बनाने की कोशिश करता है। मनोविज्ञान भी प्राणी में निहित इस संतुलन बनाने की अभिवृत्ति को बताता है। जीवन का आदर्श जीवन के अन्दर ही निहित है। उसे बाहर खोजना प्रवंचना है। जैसा कि जैव-विज्ञान एवं मनोविज्ञान बताते हैं, यदिजीवन में स्वयं संतुलन या समत्व बनाने की प्रवृत्ति पाई जाती है, यदि जीवन का अर्थ ही सन्तुलन का प्रयास है, तो फिर हमें जीवन के आदर्श के रूप में इसी समत्व यासंतुलन बनाए रखने की प्रवृत्ति को स्वीकार करना होगा। आचार-विज्ञान यद्यपि एक मूल्यात्मक-विज्ञान है, फिर भी यह जीवन की वास्तविकता को झुठला नहीं सकता है। जो स्वयं जीवन में नहीं है, वह जीवन के द्वारा पाया नहीं जा सकता, अत: वह जीवन का आदर्श नहीं हो सकता। ऐसा आदर्श, जो आदर्श ही रहे, लेकिन उपलब्ध नहीं हो सके, एक आध्यात्मिक-मृगमरीचिका से अधिक नहीं है। चाहे आदर्श आदर्श बना रहे और उसकी पूर्णत: उपलब्धिन भी हो पाए फिर भीकमसे कम आंशिक रूप में तो उसे उपलब्ध होना ही चाहिए। संघर्ष नहीं, समत्व ही मानवीय-जीवन का आदर्श हो सकता है, क्योंकि यही हमारा स्वभाव है। जो स्वभाव है, वही आदर्श है। स्वभाव से भिन्न आदर्श की कल्पना अयथार्थ है। स्पेन्सर, डार्विन एवं मार्क्स प्रभृति कुछ विचारक संघर्ष को ही जीवन का स्वभाव मानते हैं, लेकिन यह एक मिथ्या धारणा है। विज्ञान के अनुसार वस्तु का स्वभाव वह होता है, जिसका निराकरण नहीं किया जा सकता। जो नित्य और निरपवाद होता है, वही स्वभाव होता है। यदि इस कसौटी पर कसें, तो संघर्ष जीवन का स्वभाव सिद्ध नहीं होता। यदि द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के अनुसार मनुष्य-स्वभाव में संघर्ष है और मानवीयइतिहास वर्ग-संघर्ष की कहानी है और संघर्ष ही जीवन का नियम है, तो फिर द्वन्द्वात्मकभौतिकवाद संघर्ष का निराकरण क्यों करना चाहता है ? संघर्ष मिटाने के लिए होता है। जो मिटाने की, निराकरण करने की वस्तु है, उसे स्वभाव कैसे कहा जा सकता है ? संघर्ष यदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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