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________________ नैतिक जीवन का साध्य (मोक्ष) मानव - इतिहास का एक तथ्य है, तो वह मानव-स्वभाव संघर्ष नहीं, संघर्ष का निराकरण या समत्व की अवस्था है, क्योंकि युगों से मानवीय प्रयास उसी के लिए होते आए हैं। सच्चा मानव - इतिहास संघर्ष की कहानी नहीं, संघर्षों के निराकरण की कहानी है । संघर्ष और समत्व के विचलन जीवन में होते हैं, लेकिन वे जीवन का स्वभाव नहीं, क्योंकि जीवन की प्रक्रिया उनके मिटाने की दिशा में ही प्रयासशील है। संघर्षों का निराकरण करना ही नैतिकता का साध्य है। जिस प्रकार के आचरण से संघर्ष समाप्त हो, जीवन में समत्व और सन्तुलन बना रहे, वही आचरण नैतिक है। वही नैतिक-साध्य है। समत्व जीवन का साध्य है, वही नैतिक - शुभ है। समत्व शुभ है और विषमता अशुभ है। कामना, आसक्ति, राग, द्वेष, वितर्क आदि सभी जीवन की विषमता, असन्तुलन या तनाव - अवस्था को अभिव्यक्त करते हैं, अतः ये भारतीय नैतिक-चिन्तन में अशुभ माने गए हैं। इसके विपरीत, वासनाशून्य, वितर्कशून्य, निष्काम, अनासक्त एवं वीतरागदशा ही नैतिक-शुभ मानी जा सकती है, क्योंकि यही समत्व का सृजन करती है। पाश्चात्य नैतिक-विचारक स्पेन्सर कहते हैं कि जीवन के न्यून से न्यून स्तर में भी जीवन को बनाए रखने की प्रेरणा प्रधान है, अतः वह जीवन - व्यवहार ही शुभ है, जो जीवन नाये रखने में वातावरण से समायोजन करता है। स्पेन्सर की इस धारणा में सत्य अवश्य है, लेकिन वह आंशिक ही है। जैन, बौद्ध और गीता की विचारधाराएँ भी जीवन के समायोजन में नैतिकता के प्रत्यय को देखती तो हैं, लेकिन उनके अनुसार जीवन के व्यवहार का समायोजन किसी प्रयोजनहीन अन्ध विकास के निमित्त नहीं है। वह एक प्रयोजनपूर्ण - समायोजन है, जिसके द्वारा व्यक्ति सत्य की अनुभूति करता है। गीता के स्थितप्रज्ञ, बौद्धदर्शन के अर्हत् और जैन- विचार के वीतराग का जीवन आदर्श एक पूर्ण समायोजन की स्थिति है । यद्यपि भारतीय- समायोजन और पाश्चात्य समायोजन की धारणा में प्रारम्भिक रूप में निकटता है, लेकिन फिर भी दोनों में एक मौलिक अन्तर है। पाश्चात्य-परम्परा में यह समायोजन प्रमुखतः प्राणी और वातावरण के मध्य होता है, जबकि भारतीय चिन्तन में यह समायोजन व्यक्ति के अन्दर ही होता है। यह एक आध्यात्मिक संतुलन है। संतुलन का भंग और सन्तुलन की स्थिति दोनों आन्तरिक तथ्य हैं। राग और द्वेष की वृत्तियाँ ही इस सन्तुलन भंग का कारण हैं और इनसे ऊपर उठकर, अनासक्त जीवन-दृष्टि ही सच्चा समायोजन है। उपर्युक्त भारतीय विचारणाएँ यह तो स्वीकार करती हैं कि जीवन के सन्तुलन को भंग करने में वातावरण के तथ्यों का हाथ होता है, लेकिन उनके अनुसार वातावरण इस - Jain Education International 437 · For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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