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नैतिक-जीवन का साध्य (मोक्ष)
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3. नैतिकता का साध्य (अ) संघर्षका निराकरण एवं समत्व कासंस्थापन ,
हमारे नैतिक-आचरणका लक्ष्य क्या है ? नैतिक-आचरण के द्वारा हम क्या पाना चाहते हैं ? ये प्रश्न नैतिक-जीवन के साध्य का स्पष्टीकरण चाहते हैं। आचरण के विकासक्रम का इतिहास बताता है कि प्रत्येक युग की नैतिक-अवधारणाएँ उन परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का एक ऐसा समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास थीं, जिसके द्वारा व्यक्ति के अपने वासनात्मक और बौद्धिक-पक्ष के मध्य होने वालाअन्तर्द्वन्द्व समाप्त होकर जीवन में संतुलन हो, व्यक्ति और समाज के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों में उचित समायोजन हो
और समाज अथवा राष्ट्रों के मध्य एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण हो, जिसके द्वारा एक सांगसंतुलन से युक्त जीवन-प्रणाली का निर्माण हो सके।
__ मोटे तौर पर नैतिकता के विकास का इतिहास यही बताता है कि नैतिकता का सम्बन्ध हमेशा उन्हीं आदर्शों से रहा है, जिनके द्वारा वैयक्तिक एवं सामाजिक-सुख एवं शान्ति की उपलब्धि हो सके।मानवीय जीवन-प्रणाली में हम तीन प्रकार के संघर्ष पाते हैं(1) मनोवृत्तियों काआन्तरिक-संघर्ष-जोदो वासनाओं के मध्य, वासना और बुद्धि के मध्य तथा वासनाएवं बौद्धिक-आदर्शों के मध्य चलता रहता है और आन्तरिक असन्तुलन को जन्म देकर आन्तरिक-शान्तिभंग करता है, आधुनिक मनोविज्ञान इसे 'इड' और 'सुपर इगो' का संघर्ष कहता है। (2) व्यक्ति की आन्तरिक-अभिरुचियों और बाह्यपरिस्थितियों का संघर्ष-जो व्यक्ति और उसके भौतिक-परिवेश, व्यक्ति और व्यक्ति अथवा व्यक्ति और समाज के मध्य चलता रहता है और कुसंयोजन को जन्म देकर व्यक्ति की जीवन-प्रणाली को दूषित बनाता है। (3) बाह्य-वातावरण के मध्य होने वाला संघर्ष- जो विविध समाजों एव राष्ट्रों के मध्य होता है, जिसके कारण शान्ति, सुरक्षा एवं अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न होता है।
प्रत्येक युग में नैतिक-नियमों का कार्य इन संघर्षों को समाप्त करने का रहा है। वे यह बताते हैं कि हमारी जीवन-दृष्टि क्या हो, जीवन का आचरण कैसा हो, जिससे यह संघर्ष व्यक्ति को विखण्डित न कर सके। यद्यपिवे कहाँ तक इसे समाप्त कर सके, यह एक दूसरा प्रश्न है, जो नैतिक-आदेशों के आचरण से संबंध रखता है, उनकी मूल्यात्मकता से नहीं।
नैतिक-जीवन का व्यावहारिक-लक्ष्य हमेशा यही रहा है कि उसके द्वारा जीवन के असंतुलन, कुसंयोजन और अव्यवस्थाको समाप्त कर एकसंतुलित, सुसंयोजित एवं व्यवस्थित
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