________________
434
भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
द्वारा पुन: इस सन्तुलन को बनाने का प्रयास करता है। यह सन्तुलन बनाने का प्रयास ही जीवन की प्रक्रिया है।' विकासवादियों ने इसे ही 'अस्तित्व के लिए संघर्ष' कहा है। वस्तुत:, उसे 'अस्तित्व के लिए संघर्ष की अपेक्षा 'समत्व के संस्थापन का प्रयास' कहना अधिक उचित है। 'समत्व का संस्थापन, सन्तुलन एवं समायोजन की प्रक्रिया ही जीवन का महत्वपूर्ण लक्ष्य है।' जहाँ भी जीवन है, यह प्रक्रिया अविराम गति से चल रही है। जीवन का अर्थ है-समायोजन या सन्तुलन का प्रयास। दूसरे शब्दों में, समायोजन और सन्तुलन के प्रयासों की उपस्थिति ही जीवन है, उनका अभाव ही जीवन का अभाव है, मृत्यु है। मृत्यु और कुछ नहीं, मात्र सन्तुलन बनाने की प्रक्रिया का असफल होकर टूट जाना है। इस प्रकार, जैविक-दृष्टि से जीव सन्तुलन-शक्ति है, समत्व के संस्थापन की प्रक्रिया है।
अध्यात्मशास्त्र के अनुसार जीवन न तो जन्म है, न मृत्यु । एक उसका प्रारम्भबिन्दु है, दूसरा उसके अभाव की उद्घोषणा करने वाला। जीवन इन दोनों से ऊपर है। जन्म और मृत्यु तो एक शरीर में उसके आगमन और चले जाने की सूचनाएँ भर हैं, वह इनसे अप्रभावित है। जीवन तो जाग्रति है, चेतना है। वैयक्तिक-दृष्टि से इसे ही जीव कहते हैं और यही आत्मा है।
यदि उपर्युक्त दोनों ही दृष्टिकोणों के आधार पर जीवन की एक समुचित परिभाषा देने का प्रयास किया जाए, तो कह सकते हैं कि जीवन चेतन-तत्त्व की सन्तुलन-शक्ति है। चेतना जीवन है और जीवन का कार्य है-समत्व का संस्थापन, अत: सिद्ध यह हुआ कि समत्व का संस्थापन चेतना का कार्य है। दूसरे शब्दों में, समत्व में स्थित रहना ही चेतना का स्वाभाविक गुण है, जो चेतना का आदर्श और जीवन की प्रक्रिया का चरम लक्ष्य हो सकता है। मनोवैज्ञानिक-दृष्टि से चेतन-जीवन का विश्लेषण करने पर हमें उसके तीन पक्ष ज्ञान, अनुभूति और संकल्प मिलते हैं। चेतना को इन तीन पक्षों से भिन्न कहीं देखा नहीं जा सकता। चेतना इन तीन प्रक्रियाओं के रूप में ही अभिव्यक्त होती है। चेतन जीवन का प्रयास ज्ञान, अनुभूति और संकल्प की क्षमताओं के विकास के रूप में परिलक्षित होता है। संक्षेप में, जीवन-प्रक्रिया समत्व के संस्थापन पक्षों का पूर्णता की दिशा में विकास का प्रयास है। इस प्रकार, जीवन-प्रक्रिया को जान लेने पर यह विचार आवश्यक है कि हमारे नैतिक-जीवन का साध्य क्या हो सकता है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org