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भारतीय आचार- दर्शन: एक तुलनात्मक अध्ययन
यह अपेक्षा करते हैं कि वह संयम (संवर) के द्वारा नवीन कर्मों के बन्धन को रोककर तथा ज्ञान, ध्यान और तपस्या के द्वारा पुरातन कर्मों का क्षय कर परमश्रेय को प्राप्त करे । सन्दर्भ ग्रंथ -
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तत्त्वार्थसूत्र, 9/1. सर्वदर्शनसंग्रह, पृ. 80. स्थानांग, 5/2/427.
उत्तराध्ययन, 29/26.
धम्मपद, 360-363.
द्रव्यसंग्रह, 34.
समवायांग, 5/5.
स्थानांग, 8/3/598.
सूत्रकृतांग, 1/8/16. दशवैकालिक, 10/15.
संयुत्तनिकाय, 34/2/5/5.
धम्मपद, 360-361
वही, 362. तुलनीय दशवैकालिक 10/15.
गीता, 2/58.
गीता, 2/60, 2/67, 2/68, 2/61. दशवैकालिक, 1/1
पश्चिमी दर्शन (दीवानचन्द), पृ. 121.
हिन्दुओं का जीवन-दर्शन, पृ. 68.
पश्चिमी दर्शन (दीवानचन्द्र ), पृ. 164.
उत्तराध्ययन, 30/5-9.
समयसार, 389.
सभासियम्, 9/10.
जैनधर्म, पृ. 87.
उत्तराध्ययन, 30 / 6.
वही, 30 / 7-8, 30.
अंगुत्तरनिकाय, 3/74.
(अ) उत्तराध्ययन, 9/44., (ब) सूत्रकृतांग, 1/8 /24.
भावनाशतक, 72-73.
छहढाला, 4/5.
गीता, 18/66.
वही, 18 /51-53.
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