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________________ 430 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन १. गीता का दृष्टिकोण यद्यपि गीता में निर्जरा शब्द का प्रयोग नहीं है, तथापि जैन-दर्शन निर्जरा शब्द का जिस अर्थ में प्रयोग करता है, वह अर्थ गीता में उपलब्ध है। जैन-दर्शन में निर्जरा शब्द का अर्थ पुरातन कर्मों को क्षय करने की प्रक्रिया है। गीता में भी पुराने कर्मों को क्षय करने की प्रक्रिया का निर्देश है। गीता में ज्ञान को पूर्व-संचित कर्म को नष्ट करने का साधन कहा गया है। गीताकार कहता है कि जिस प्रकार प्रज्वलित अग्नि ईंधन को भस्म कर देती है, उसी प्रकार ज्ञानाग्नि सभी पुरातन कर्मों को नष्ट कर देती है। हमें यहाँ जैन-दर्शन और गीता में स्पष्ट विरोध प्रतिभासित होता है। जैन-विचारणा तप पर जोर देती है और गीता ज्ञान पर, लेकिन अधिक गहराई पर जाने पर यह विरोध बहुत मामूली रह जाता है, क्योंकि जैनाचारदर्शन में तप का मात्र शारीरिक या बाह्य-पक्ष ही स्वीकार नहीं किया गया है, वरन् उसका ज्ञानात्मक एवं आंतरिक-पक्ष भी स्वीकृत है। जैन-दर्शन में तप के वर्गीकरण में स्वाध्याय आदि को स्थान देकर उसे ज्ञानात्मक-स्वरूप दिया गया है। यही नहीं, उत्तराध्ययन एवं सूत्रकृतांग में अज्ञानतप की तीव्र निन्दा भी की गई है, अत: जैन-विचारक भी यह तो स्वीकार कर लेते हैं कि निर्जरा ज्ञानात्मक-तप से होती है, अज्ञानात्मक-तप से ही नहीं। वस्तुत:, निर्जरा या कर्मक्षय के निमित्त ज्ञान और कर्म (तप)-दोनों आवश्यक हैं। यही नहीं, तपके लिए ज्ञान को प्राथमिक भी जाना गया है। निर्जरा में ज्ञान और तप का क्या स्थान है, इसे जैन मुनि रत्नचन्द्रजी के निम्न पद्य से समझा जा सकता है बाल (मूर्ख) तपस्वी कहते हैं जो कष्ट करोड़ों वर्ष महान्। जितने कर्म नष्ट करते हैं उस तप से वह नर अज्ञान।। ज्ञानीजन उतने कर्मों का क्षण भर में कर देते हैं नाश। ज्ञान निर्जरा का कारण है मिलता इससे मुक्ति प्रकाश। अग्नि और जल जिस प्रकार से वस्त्र शुद्धि कर देते हैं। उसी तरह से ज्ञान और तप कर्मों का क्षय करते हैं।।28 . दौलतरामजी कहते हैं कोटि जन्म तप तपैं ज्ञान बिन कर्म झरै जे। ज्ञानी के दिन माहिं त्रिगुप्ति तै सहज टरै ते।।" इस प्रकार, जैनाचार-दर्शन ज्ञान को निर्जरा का कारण तो मानता है, लेकिन एकांत कारण नहीं मानता। जैनाचार-दर्शन कहता है, मात्र ज्ञान निर्जराका कारण नहीं है। यदि गीता के उपर्युक्त श्लोक को आधार मानें, तो जहाँ गीता का आचार-दर्शन ज्ञान को कर्मक्षय (निर्जरा) का कारण मानता है, वहाँ जैन-दर्शन ज्ञान समन्वित तप से कर्मक्षय (निर्जरा) मानता है, लेकिन जब गीताकार ज्ञान और योग (कर्म) का समन्वय कर देता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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