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बन्धन से मुक्ति की ओर ( संवर और निर्जरा)
साधना-मार्ग के पथिक को सदैव जाग्रत रहते हुए विषय - सेवनरूप छिद्रों से आने वाले कर्मास्रव या विकार से अपनी रक्षा करनी है। सूत्रकृतांग में कहा गया है कि कछुआ जिस प्रकार अपने अंगों को समेटकर खतरे से बाहर हो जाता है, वैसे ही साधक भी अध्यात्मयोग के द्वारा अन्तर्मुख होकर अपने को पापवृत्तियों से सुरक्षित रखे।' मन, वाणी, शरीर और इन्द्रिय- व्यापारों का संयमन ही नैतिक जीवन की साधना का लक्ष्य है। सच्चे साधक की व्याख्या करते हुए दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि जो सूत्र तथा उसके रहस्य को जानकर हाथ, पैर, वाणी तथा इन्द्रियों का यथार्थ संयम रखता है ( अर्थात् सन्मार्ग में विवेकपूर्वक प्रयत्नशील रहता है), अध्यात्मरस में ही जो मस्त रहता है और अपनी आत्मा समाधि में लगाता है, वही सच्चा साधक है। 10
बौद्ध दर्शन में संवर
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त्रिपिटक - साहित्य में संवर शब्द का प्रयोग बहुत हुआ है, लेकिन कायिक, वाचिक एवं मानसिक-प्रवृतियों के संयमन के अर्थ में ही । भगवान् बुद्ध संयुत्तनिकाय के संवरसुत्त में, असंवर और संवर कैसे होता है, इसके विषय में कहते हैं- भिक्षुओं ! संवर और असंवर का उपदेश करूँगा । उसे सुनो ?
भिक्षुओं! कैसे असंवर होता है ?
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भिक्षुओ ! चक्षुविज्ञेय रूप, श्रोत्रविज्ञेय शब्द, घ्राणविज्ञेय गन्ध, जिह्वाविज्ञेय रस, कायाविज्ञेय स्पर्श, मनोविज्ञेय धर्म, अभीष्ट, सुन्दर, लुभावने, प्यारे, कामयुक्त, राग में
ने वाले होते हैं। यदि कोई भिक्षु उसका अभिनन्दन करे, उसकी बड़ाई करे और उसमें संलग्न हो जाए, तो उसे समझना चाहिए कि मैं कुशल धर्मों से गिर रहा हूँ। इसे रिहान कहा है।
भिक्षुओं! ऐसे ही असंवर होता है । भिक्षुओं ! संवर कैसे होता हैं ?
भिक्षुओं! चक्षुविज्ञेय रूप, श्रोत्रविज्ञेय शब्द, घ्राणविज्ञेय गन्ध, जिह्वाविज्ञेय रस, कायाविज्ञेय स्पर्श, मनोविज्ञेय धर्म, अभीष्ट, सुन्दर, लुभावने, प्यारे, कामयुक्त, राग में डालने वाले होते हैं। यदि कोई भिक्षु उनका अभिनन्दन न करे, उनकी बड़ाई न करे और उनमें संलग्न न हो, तो उसे समझना चाहिए कि मैं कुशल धर्मों से नहीं गिर रहा हूँ। इस अपरिहान कहा है। भिक्षुओं ! ऐसे ही संवर होता है।
धम्मपद में बुद्ध कहते हैं, 'भिक्षुओं ! आँख का संवर उत्तम है, श्रोत्र का संवर उत्तम है, भिक्षुओं ! नासिका का संवर उत्तम है और उत्तम है, जिह्वा का संवर । मन, वाणी और शरीर, सभी का संवर उत्तम है, जो भिक्षु पूर्णतया संवृत है, वह समग्र दुःखों से शीघ्र छूट जाता है। 12
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